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स्वयं को ज्ञानी समझने से ही आती है तरक्की में बाधा


 

"राज्य-स्तरीय प्रशिक्षण संस्थानों के लिये मानक बेंचमार्क का निर्धारण'' कार्यशाला सम्पन्न 

सीखने का काम कभी खत्म नहीं होता है। स्वयं को ज्ञानी समझने से ही तरक्की में बाधा उत्पन्न होने लगती है, क्योंकि ज्ञानी मानता है कि उसे सब आता है। लेकिन परिवर्तन के साथ समय-समय पर प्रशिक्षण के जरिये नई पद्धति को जानना आवश्यक है। इसमें प्रशिक्षण संस्थानों की महतवपूर्ण भूमिका है। यह बात अपर मुख्य सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास श्री इकबाल सिंह बैंस ने दो-दिवसीय 'राज्य-स्तरीय प्रशिक्षण संस्थानों के लिये मानक बेंचमार्क का निर्धारण'' राष्ट्रीय कार्यशाला के समापन पर कही।

श्री बैंस ने कहा कि संस्था बनाना आसान होता है, लेकिन उसके बेंचमार्क निर्धारित करना महत्वपूर्ण और जरूरी है। कोई संस्था मार्केट में अपना नाम स्थापित कर लेती है, तो वह स्वयं बेंचमार्क बन जाती है। उसकी पहचान से ही उसका विश्लेषण किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि जरूरतमंद लोगों को समय रहते प्रशिक्षित किया जाना चाहिये। प्रशिक्षण की महत्ता पर ध्यान देने की भी जरूरत है। प्रशिक्षक और प्रशिक्षणार्थी में आपसी सामंजस्य होना चाहिये। दोनों को एक-दूसरे की भावनाओं को समझना चाहिये। उन्होंने कहा कि प्रशिक्षण संस्थाओं में ऐसा वातावरण हो कि प्रशिक्षणार्थी में प्रशिक्षण लेने की इच्छा जागृत हो। श्री बैंस ने कहा कि दो दिन में कार्यशाला में सामने आये बिन्दुओं पर हमें लगातार काम करना होगा और उन्हें लागू करने की पहल करनी होगी। आशा के बाद ही नये परिवर्तन की शुरूआत होती है। उन्होंने कहा कि अंतिम छोर के व्यक्ति को लाभ पहुँचाने के लिये सदैव प्रयासरत रहने की जरूरत है। इसके लिये प्रशिक्षित व्यक्ति लगातार नीचे के स्तर पर अपने अनुभवों को साझा करता रहे।

पूर्व भारतीय प्रशासनिक अधिकारी डॉ. ज्ञानेन्द्र बड़गैया ने कहा कि कार्यशाला में दो दिन में जो बेंचमार्क निर्धारित किये गये हैं, उन्हें समाहित करते हुए एक ही मंच पर लाने का प्रयास और केन्द्रीयकृत किया जाये। साथ ही इन बेंचमार्कों को सभी प्रशिक्षण संस्थानों को उपलब्ध करवाया जाये, तभी प्रशिक्षण संस्थानों के निर्धारित बेंचमार्क में एकरूपता आयेगी और मापदण्ड निर्धारित होंगे। इस बात पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है कि कोई महत्वपूर्ण बिन्दु छूट नहीं जाये। उन्होंने कहाकि तकनीकी युग में गूगल को मित्र बनाया जाये। उन्होंने रिसर्च की भावना को निरंतर रखने का भी सुझाव दिया।

सुशासन संस्थान संचालक श्री अखिलेश अर्गल ने कहा कि कार्यशाला में अकादमिक, अधोसंरचनात्मक, प्रबंधन एवं प्रतीकात्मक और अंतर-संस्थागत संबंध विषय पर चर्चा संस्थान के बेंचमार्क निर्धारित करने में सहायक की भूमिका में रहेगी। उन्होंने कहा कि हमेशा उद्देश्य पर ध्यान देना होगा और प्रशिक्षण संस्थान का उद्देश्य के अनुसार उपयोग हो रहा है या नहीं, इसे भी देखना होगा।

दो-दिवसीय कार्यशाला में 111 प्रतिभागी ने शिरकत की। इनमें से 52 प्रतिभागी दूसरे राज्यों के हैं। वाल्मी संचालक श्रीमती उर्मिला शुक्ला ने आभार माना और अतिथियों को स्मृति-चिन्ह भेंट किये।

दुर्गेश रायकवार

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