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काव्य रचना

तमाम रंग जहाँ इल्तिजा के रक्खे थे

तमाम रंग जहाँ इल्तिजा के रक्खे थे लहू लहू वहीं मंज़र अना के रक्खे थे करम के साथ सितम भी बला के रक्खे थे हर एक फूल ने काँटे छुपा के रक्खे थे सुकूल चेहरे पे हर ख़ुश अदा...

आए जिस-जिस की हिम्मत हो

हिन्दु महोदधि की छाती में धधकी अपमानों की ज्वाला, और आज आसेतु हिमाचल मूर्तिमान हृदयों की माला । सागर की उत्ताल तरंगों में जीवन का जी भर कृन्दन, सोने की लंका की...

हरी हरी दूब पर

हरी हरी दूब पर ओस की बूंदे अभी थी, अभी नहीं हैं। ऐसी खुशियाँ जो हमेशा हमारा साथ दें कभी नहीं थी, कहीं नहीं हैं। क्काँयर की कोख से...

अलि कहाँ सन्देश भेजूँ?

अलि कहाँ सन्देश भेजूँ? मैं किसे सन्देश भेजूँ? एक सुधि अनजान उनकी, दूसरी पहचान मन की, पुलक का उपहार दूँ या अश्रु-भार अशेष भेजूँ! चरण चिर पथ के विधाता उर अथक गति...

अपनी ज़ुल्फों को सितारों के हवाले कर दो

अपनी ज़ुल्फों को सितारों के हवाले कर दो शहर-ए-गुल बादा गुसारों के हवाले कर दो तल्ख़ी-ए-होश हो या मस्ती-ए-इदराक-ए-जनूं आज हर चीज़ बहारों के हवाले कर...

बेटियां शुभकामनाएं हैं

बेटियां शुभकामनाएं हैं, बेटियां पावन दुआएं हैं। बेटियां जीनत हदीसों की, बेटियां जातक कथाएं हैं। बेटियां गुरुग्रंथ की वाणी, बेटियां...

कर्मवीर

देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहीं रह भरोसे भाग के दुख भोग पछताते नहीं काम कितना ही कठिन हो किन्तु उबताते नहीं भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं...

बालू की बेला

आँख बचाकर न किरकिरा कर दो इस जीवन का मेला। कहाँ मिलोगे? किसी विजन में? - न हो भीड़ का जब रेला॥ दूर! कहाँ तक दूर? थका भरपूर चूर सब अंग हुआ। दुर्गम पथ मे...

सपने मैं ने भी देखे हैं

  सपने मैं ने भी देखे हैं- मेरे भी हैं देश जहाँ पर स्फटिक-नील सलिलाओं के पुलिनों पर सुर-धनु सेतु बने रहते हैं। मेरी भी उमँगी कांक्षाएँ लीला-कर से छू आती हैं रंगारंग...

“मैं एक मजदूर हूँ”

मैं एक मजदूर हूँ, ईश्वर की आंखों से मैं दूर हूँ। छत खुला आकाश है, हो रहा वज्रपात है। फिर भी नित दिन मैं, गाता राम धुन हूं। गुरु हथौड़ा हाथ में, कर रहा प्रहार...

मॉं की ममता

कि लगा बचपन में यू अक्सर अँधेरा ही मुकद्दर है. मगर माँ होसला देकर यू बोली तुम को क्या डर है, मै अपना पन ही अक्सर ढूंढता रहता हू  रिश्तो में तेरी निश्छल सी ममता कहीं...

मत निकल, मत निकल, मत निकल

शत्रु ये अदृश्य है, विनाश इसका लक्ष्य है, कर न भूल, तू जरा भी ना फिसल, मत निकल, मत निकल, मत निकल। हिला रखा है विश्व को, रुला रखा है विश्व को, फूंक कर बढ़ा कदम,...

मैं खाकी...

मैं खाकी...  सदा चुपचाप चली इस कर्म पथ पर कभी किसी को जताया नहीं कभी किसी को कहा नहीं आज अनायास ही लगा कुछ कहूं आपसे आज एक साथी को खो दिया मैंने दु:ख है, नहीं रोक...

रोटी का सवाल

कितनी रोटी गाँव में अकाल था, बुरा हाल था। एक बुढ़ऊ ने समय बिताने को, यों ही पूछा मन बहलाने को- ख़ाली पेट पर कितनी रोटी खा सकते हो गंगानाथ? ...

कोन है तू? कोन है तू?

कोन है तू? कोन है तू? कोई रोक सके ना जग में जिसको ऐसा बवाल है तू, बस मुट्ठी भर मुसीबते है, महा प्रचंड महाकाल है तू, अपने अन्दर को जान ले तू, तुझे उस अम्बर से जुड़ना...