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दूषित पानी का दुष्परिणाम : दो भाई बनें विकलांग


 

डॉ. चंदर सोनाने

                 दूषित पानी के दुष्परिणाम क्या होता है ? यह दुख दर्द उज्जैन जिले के नागदा तहसील के ग्राम परमार खेड़ी के एक परिवार से जाना जा सकता है। इस गाँव का 10 साल का रोहित चलने फिरने से मोहताज हो गया है। उसकी कमर झुक गई है। अब हालत यह हो गई है कि वह बगैर किसी के सहारे के दैनिक क्रियाएँ भी नहीं कर सकता है। रोहित के छोटे भाई विशाल में भी यह लक्षण अब दिखने लग गए है। 7 वर्षीय विशाल को भी खड़े होनें में दिक्कत होने लगी है। एकाएक उनका खिलखिलाता बचपन जिदंगी से मायूस हो गया है। 
                रोहित और विशाल के पिता श्री बालू चौधरी ने इस संबंध में बताया कि रोहित बचपन से ठीक था। जब वह पाँच साल का हुआ, तब चलने में उसे थोड़ी परेशानी होती थी । लेकिन अपना काम खुद कर सकता था। बच्चों के साथ खेलता भी था। लेकिन अब वह खुद के पैरों पर खड़ा भी नहीं हो सकता है। उसके सारे दांत भी टूट चुके है। रोहित के छोटे भाई विशाल में भी इस तरह के लक्षण नजर आने लगे है। उसे उठने के लिए घुटने को हाथों का सहारा देना पड़ता है। उसे समय पर उपचार नहीं मिला तो वह भी विकलांगता की चपेट में आ सकता है । 
               दोनो बच्चों के पिता बालू ने कहा कि बच्चों इस दयनीय हालत का कारण कुएँ का पानी है। इसका लाल पानी उसके बच्चों के भविष्य को चौपट कर रहा है। इस पानी के कारण ही उसके बच्चों की यह स्थिति हो गई है। बालू ने बताया कि कुछ दिनों से गाँव में टैंकर से पीने का साफ पानी भेजा जा रहा था, किंतु वह व्यवस्था अब बंद हो गई है। इस कारण मजबूरी में उन्हें कुएँ का दुषित पानी पीना पड़ा। 
                उधर दूसरी और दूषित पानी पीने के कारण उज्जैन शहर के ही नानाखेड़ा क्षेत्र की 25 कॉलोनियों के रहवासी पेट दर्द और चर्म रोग से परेशान हो रहे हैं।  इन कॉलोनियों में हर घर में इससे पीड़ित लोग मिल जाएंगे। यहाँ की कॉलोनियों के निवासी बोरिंग का पानी पीने के लिए मजबूर हैं। इसमें टीड़ीएस की मात्रा 2500 तक है। जबकि टीडीएस की मात्रा 300   - 400 से अधिक नहीं होना चाहिए। ये पिछले 15 साल से दूषित पानी पीने को मजबूर है। उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही हैं। मजबूरन उन्हें आरओ का सिस्टम लगाने पड़ रहे है। किंतु वह भी तीन महीने से अधिक नहीं चल पाता है। इस कारण उन्हें बाहर से कैन में पानी मंगाना पड़ रहा है। 
                मजेदार बात यह है कि उज्जैन शहर का नगर निगम स्वच्छता के मामले में नंबर 1 स्थान प्राप्त करने के लिए हाथ पैर मार रहा है। किंतु वह अपने नगरवासियों को ही वह स्वच्छ जल नहीं पीला पा रहे हैं। पिछले दिनों पेयजल के लिए शिप्रा के पानी का प्रदाय किया गया था। इस पानी मे खान नदी का गंदा पानी भी खुले आम मिल रहा था । इससे लोग घर घर में बीमार हो रहे थे। काफी शिकायतों के बाद जाकर शिप्रा का पानी प्रदाय करना नगर निगम ने बंद किया था। 
                  उज्जैन शहर हो या ग्रामीण क्षेत्र सबको साफ पानी पीने को मिले । यह उनका मूलभूत अधिकार है। किंतु नगर निगम हो या पंचायत, सब अपने कर्तव्य से दूर भाग रहे हैं। इस कारण नागरिकों को मजबूरी में दूषित पानी पीना पड़ रहा है।  राज्य शासन को चाहिए कि वह इस दिशा मे शीघ्र प्रयास करें। गाँव व शहर वालों को कम से कम पीने का साफ पानी मिले ,यह सुनिश्चित करने की जिम्मदारी राज्य शासन की ही है।  उसे अपने कर्तव्य का निर्वहन करना चाहिए।
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