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मुक्तिबोध की परंपरा को आगे ले जाने वाले कवि थे चंद्रकांत देवताले



उज्जैन। पूरी दुनिया मे आज चंद्रकांत देवताले को याद किया जा रहा है। बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जिन्हें यह सौभाग्य मिलता है। उज्जैन को आने वाले समय में बैचैन आत्मा के परिंदे देवताले के नाम से जाना जाएगा।
यह बात कालिदास अकादमी स्थित अभिनव रंगमंडल में साहित्य मंथन के संयोजन में चंद्रकांत देवताले को श्रध्दांजलि देने हेतु आयोजित समारोह में श्रद्धा सुमन व्यक्त करते हुए डाॅ. शिव शर्मा ने कही। इस अवसर पर साहित्यकारों ने चंद्रकांत देवताले को श्रद्धासुमन अर्पित किये। डाॅ. मोहन गुप्त ने संबोधित करते हुए कहा कि देवताले अद्भुत व्यक्तित्व के धनी थे। वे सिद्धहस्त कवि थे और एक महापुरुष थे, उनके जाने से सारस्वस्त जगत का एक नक्षत्र समाप्त हो गया। संपादक श्रीराम दवे ने कहा कि देवताले मुक्तिबोध की परंपरा को आगे ले जाने वाले कवि बने। मानव जीवन से जुड़े सभी विषयों पर उनकी लेखनी कविता में चलती थी। डाॅ. शैलेंद्र शर्मा ने कहा कि वे हमेशा ताप और बेचैनी से भरे रहते थे और यह आजीवन उनमें बनी रही। वे समकालीन हिंदी कविता के प्रमुख कवि थे। डाॅ. पिलकेन्द्र अरोरा ने कहा कि देवताले प्रचार-प्रसार से कोसों दूर थे। साहित्यिक समारोहों में अतिथि बनने से वे परहेज करते थे और बहुत ही मजबूरी में आतिथ्य स्वीकार करते थे। डॉ. देवेंद्र जोशी ने देवताले को स्मरण करते हुए देवताले पर लिखी ताजी रचना का पाठ किया। साहित्य मंथन के अध्यक्ष डाॅ. हरीशकुमार सिंह ने कहा कि देवताले नई कविता के अग्रणी और प्रतिष्ठित कवि थे तथा देवताले निराला से लेकर मुक्तिबोध और अपने प्रिय कवि मित्र सुदीप बेनर्जी से लेकर स्मिता पाटिल पर भी कविता लिख सकते थे। कवि राजेश सक्सेना ने देवताले के व्यक्तित्व का स्मरण करते हुए उनकी कविताओं का पाठ किया। श्रद्धांजलि सभा में सांसद डाॅ. चिंतामणि मालवीय के लिखित शोकसंदेश का वाचन शरद शर्मा ने किया। कालिदास अकादमी के निदेशक आनंद सिन्हा के लिखित संदेश का वाचन संतोष पंड्या ने किया। श्रद्धा सुमन अर्पित करने वालों में डॉ. हरीश प्रधान, शिव चैरसिया, डॉ. बालकृष्ण शर्मा, केदारनाथ शुक्ल, रमेश दीक्षित, डॉ. उर्मि शर्मा, पुष्पा चैरसिया, डॉ. गोपाल शर्मा, डॉ. अरुण वर्मा,  संतोष पंड्या, प्रमोद त्रिवेदी, राजेश सक्सेना, डॉ. प्रकाश रघुवंशी, अजय मेहता, संतोष सुपेकर, नीलोत्पल, रमेशचंद्र शर्मा, मुकेश जोशी आदि सम्मिलित थे। संचालन डाॅ. पिलकेन्द्र अरोरा ने किया। 

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