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भक्त के हृदय में नहीं होता किसी के लिए वैर-विरोध


भोपाल । हमारे शास्त्रों में ऐसा एक भी उदाहरण नहीं मिलता जिसमें किसी भक्त ने किसी को श्राप दिया हो। क्योंकि उसके हृदय में तो सबके लिए प्रेम ही रहता है, वह कण-कण में अपने आराध्य के दर्शन करता है। ऐसे में किसी से उसका वैर, या विरोध होगा इस बात का तो प्रश्न ही नहीं उठता। यह बात मानस भवन में चल रही भागवत कथा के पांचवे दिन स्वामी अनुभवानंद जी ने कही।

गीता उपदेश को मनुष्य जीवन की व्यवहारिकता से जोड़ते हुए भागवताचार्य ने कहा कि, भक्त भक्ति के प्रभाव से द्वेष रहित हो जाता है। इसलिए अगर व्यक्ति में भक्ति का एक गुण आ जाए तो उसमें सारे सद्गुण अपने आप आ जाते हैं।

भागवताचार्य ने श्रीमद्भागवत पुराण में भक्तों के चार लक्षण बताये। जिसमें पहला लक्षण बड़ों के प्रति आदर भाव का होना, दूसरा अपने बराबर हमउम्रों से मित्रता का भाव रखना, तीसरा छोटों के प्रति क्षमा करने की भावना रखना एवं चौथा लक्षण बुरे लोगों के प्रति उदासीनता का भाव रखना है। भागवताचार्य ने कहा कि इन चारों लक्षणों एवं गुणों का एक ही प्रभाव होगा कि हमारा मन शांत रहेगा और हमारे हृदय में किसी के प्रति कोई दुर्भावना नहीं आएगी, यही भक्त के लक्षण हैं। सात दिवसीय इस भागवत कथा का गुरुवार को समापन किया जाएगा।

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