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काव्य रचना

स्त्रियाँ

जीर्ण शीर्ण अट्टालिकाओं की भित्तियों पर अजंता-एलोरा की गुफाओं में उकेरी सुन्दर नक्काशी में नजर आती है स्त्रियों की विभिन्न भाव भंगिमाएँ स्मित बिखेरती...

नसीब आज़माने के दिन आ रहे हैं

नसीब आज़माने के दिन आ रहे हैं क़रीब उनके आने के दिन आ रहे हैं जो दिल से कहा है, जो दिल से सुना है सब उनको सुनाने के दिन आ रहे हैं अभी से दिलो-जाँ सरे-राह रख दो के:...

साकेत

एक तरु के विविध सुमनों से खिले, पौरजन रहते परस्पर हैं मिले। स्वस्थ, शिक्षित, शिष्ट, उद्योगी सभी, बाह्यभोगी, आन्तरिक योगी सभी। ...

जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्याँ

जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्याँ जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्याँ, घुँघटा में आग लगा देती, मैं लाज के बंधन तोड़ सखी पिया प्यार को अपने मान लेती। इन चूरियों की लाज पिया...

लाखों सैनिकों की अनसुनी कहानी है फिल्‍म 'बंकर'

हर सैनिक के पास बताने के लिए एक कहानी है, लेकिन उसे अपनी भावनाओं पर लगाम लगाकर रखना होता है. आज (17 जनवरी) सिनमाघरों में भारत की पहली एंटी-वार फिल्म ‘बंकर (Bunker)’ रिलीज हुई है,...

मत ठुकराओ तुम उनको

आज जो तेरा कंधा मांग है, कल चलना तुझे सिखाए थे। उनकी उंगली थाम कर तुम, प्रथम कदम बढ़ाए थे। खुद भूखा रहते थे लेकिन, भरपेट भोजन तुम्हें कराते थे, बहुत प्यार से...

मेरा शहर एक लम्बी बहस की तरह है, सड़कें - बेतुकी दलीलों सी

मेरा शहर एक लम्बी बहस की तरह है सड़कें - बेतुकी दलीलों सी और गलियां इस तरह जैसे एक बात को कोई इधर घसीटता कोई उधर हर मकान एक मुट्ठी-सा भिंचा हुआ...

हम हैं

हम हैं सूरज-चाँद-सितारे।। हम नन्हे-नन्हे बालक हैं, जैसे नन्हे-नन्हे रजकण। लेकिन हम नन्हे रजकण ही, हैं विशाल पर्वत बन जाते। हम नन्हे जलकण...

एक ग़ज़ल

आहों से जला देंगे, हम सोज़े-निहाँ वाले। पत्थर न उठा हम पर, शीशे के मकाँ वाले।   अब अर्श नहीं हिलता, मज़लूम की चीखों से, बर्बाद न कर आँसू, फ़रियादों-फुगाँ वाले। किस...

अटल गीत

आज दर्द बड़ा है और मेरा ये दिल छोटा पड़ गया है। भारत के बाग़ का सबसे बेहतरीन फूल झड़ गया है। हर सांस आज जख्मी है लफ्ज भी घायल पड़े हैं। आज बहने से रोको ना नैना भी जिद पर अड़े...

जीवन सार

सदियाँ बीत गयी इक उलझन सुलझाने में अनगिनत हस्तियाँ आई और चली गयी होंगी असंख्य किरदार फ़ना हो गए होंगे सुल्तान फ़क़ीर हो गए होंगे अश्क बह...

चिन्ता

छाया, छाया तुम कौन हो छाया! मैं तुममें किस वस्तु का अभिलाषी हूँ विश्व-नगर में कौन सुनेगा मेरी मूक पुकार सब ओर बिछे थे नीरव छाया के जाल घनेरे हा कि मैं खो जा...