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Home - काव्य रचना << सपने मैं ने भी देखे हैं

सपने मैं ने भी देखे हैं


  सपने मैं ने भी देखे हैं-
मेरे भी हैं देश जहाँ पर
स्फटिक-नील सलिलाओं के पुलिनों पर सुर-धनु सेतु बने रहते हैं।

मेरी भी उमँगी कांक्षाएँ लीला-कर से छू आती हैं रंगारंग फानूस
व्यूह-रचित अम्बर-तलवासी द्यौस्पितर के!

आज अगर मैं जगा हुआ हूँ अनिमिष-
आज स्वप्न-वीथी से मेरे पैर अटपटे भटक गये हैं-
तो वह क्यों? इसलिए कि आज प्रत्येक स्वप्नदर्शी के आगे
गति से अलग नहीं पथ की यति कोई!

अपने से बाहर आने को छोड़ नहीं आवास दूसरा।
भीतर-भले स्वयं साँई बसते हों।
पिया-पिया की रटना! पिया न जाने आज कहाँ हैं :
सूली पर जो सेज बिछी है, वह-वह मेरी है!
सपने मैं ने भी देखे हैं-
मेरे भी हैं देश जहाँ पर
स्फटिक-नील सलिलाओं के पुलिनों पर सुर-धनु सेतु बने रहते हैं।

मेरी भी उमँगी कांक्षाएँ लीला-कर से छू आती हैं रंगारंग फानूस
व्यूह-रचित अम्बर-तलवासी द्यौस्पितर के!

आज अगर मैं जगा हुआ हूँ अनिमिष-
आज स्वप्न-वीथी से मेरे पैर अटपटे भटक गये हैं-
तो वह क्यों? इसलिए कि आज प्रत्येक स्वप्नदर्शी के आगे
गति से अलग नहीं पथ की यति कोई!

अपने से बाहर आने को छोड़ नहीं आवास दूसरा।
भीतर-भले स्वयं साँई बसते हों।
पिया-पिया की रटना! पिया न जाने आज कहाँ हैं :
सूली पर जो सेज बिछी है, वह-वह मेरी है!

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