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सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा का विश्राम बुधवार को हुआ।


उज्जैन | सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा का विश्राम बुधवार को हुआ। श्रीमद्भागवत कथा के सातवें दिन कथा व्यास जगन्नाथजी रामायणी अयोध्या वाले ने सुदामा चरित्र और परीक्षित मोक्ष आदि प्रसंगों का सुंदर वर्णन करते हुए कहा कि सुदामाजी जितेंद्रिय एवं भगवान कृष्ण के परम मित्र थे। मित्रता कैसे निभाई जाए, यह भगवान श्रीकृष्ण व सुदामाजी से समझा जा सकता है।

डॉ. रश्मि जैन ने बताया कि कथा की पूर्णाहुति पर महाआरती कर महाप्रसादी का आयोजन किया गया। इस दौरान भक्तों ने जमकर नृत्य कर भगवान की भक्ति की। कथावाचक रामायणी अयोध्या वाले ने कथा में कहा कि सुदामा गरीबी के बावजूद भी हमेशा भगवान के ध्यान में मग्न रहते। पत्नी सुशीला सुदामाजी से बार बार आग्रह करती कि आपके मित्र तो द्वारकाधीश हैं, उनसे जाकर मिलो, शायद वह हमारी मदद कर दें। सुदामा पत्नी के कहने पर द्वारका पहुंचते हैं और जब द्वारपाल भगवान कृष्ण को बताते हैं कि सुदामा नाम का ब्राह्मण आया है। कृष्ण यह सुनकर नंगे पैर दौड़कर आते हैं और अपने मित्र को गले से लगा लेते। उनकी दीन दशा देखकर कृष्ण के आंखों से अश्रुओं की धारा प्रवाहित होने लगती है। सिंहासन पर बैठाकर कृष्णजी सुदामा के चरण धोते हैं। सभी पटरानियां सुदामाजी से आशीर्वाद लेती हैं। सुदामाजी विदा लेकर अपने स्थान लौटते हैं तो भगवान कृष्ण की कृपा से अपने यहां महल बना पाते हैं लेकिन सुदामाजी अपनी फूस की बनी कुटिया में रहकर भगवान का सुमिरन करते हैं। अगले प्रसंग में शुकदेवजी ने राजा परीक्षित को सात दिन तक श्रीमद्भागवत कथा सुनाई, जिससे उनके मन से मृत्यु का भय निकल गया। तक्षक नाग आता है और राजा परीक्षित को डस लेता है। राजा परीक्षित कथा श्रवण करने के कारण भगवान के परमधाम को पहुंचते हैं। महाराजश्री ने कहा जब भी भक्तों पर विपदा आई है, प्रभु उनका तारण करने अवश्य आए हैं। इसके साथ कथा का विराम हो गया।

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