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किचन गार्डन के लिए किचन वेस्ट से बनाएं जैविक खाद


वर्तमान समय में शहरी आबादी के लगभग हर घर में किचन गार्डन देखने को मिलता है। इसके माध्यम से हरियाली और फूलों के साथ ताजी हरी सब्जियां भी उगाई जा रही हैं, जो सेहद के लिए फायदेमंद हैं। किचन गार्डन के लिए सबसे उपयोगी तत्व जैविक खाद है। अब इसे भी किचन वेस्ट के माध्यम से घर पर ही बनाया जा सकता है। जहां किचन वेस्ट को यूं ही फेंक दिया जाता है, कोई सोच भी नहीं सकता कि किचन वेस्ट से कम समय में कंपोस्ट खाद तैयार की जा सकती है।कृषि और गार्डनिंग संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए विज्ञान के नए प्रयोग कर कुछ नए उपकरण तैयार किए हैं इंडियन इंस्टीट्यूट आफ स्वाइल साइंस (आइआइएसएस), नबीबाग के वैज्ञानिकों की टीम ने। इन उपकरणों के माध्यम से खाद बनाने और मृदा की उर्वरकता की पहचान करना आसन हो गया है। वहीं, पराली जलाने की समस्या का समाधान भी हुआ है। मृदा परीक्षण से चार से पांच घंटे में ही मृदा में आवश्यक पोषक तत्व ज्ञात किए जा सकते हैं और ‘एक्सेल डीकंपोजर’ पराली जलाने की समस्या का समाधान कर रहा है।


‘फैमिली नेट वेसल्स’ से एक माह में तैयार हो जाती है कंपोस्ट खाद
आइआइएसएस की कृषि वैज्ञानिक खुशबू रानी ने बताया कि किचन वेस्ट डस्टबिन में डालकर बाहर फेंकने से अच्छा है कि उसे डीकंपोस्ट किया जा सके। इससे जहां आपका किचन गार्डन बेहतर बनेगा वहीं वेस्ट मटेरियल का रीयूज हो जाएगा। खुशबू ने बताया कि इसके लिए हमने ‘फैमिली नेट वेसल’ तैयार की है, जिसमें किचन से निकला वेस्ट इस वेसल में डाला जाता है और फिर कुछ ही दिनों में खाद तैयार हो जाती है, इस खाद का प्रयोग पेड़ों की ग्रोथ के लिए काफी फायदेमंद है और किचन गार्डन को सुंदर बनाने में भी यह फायदेमंद है। उन्होंने बताया कि इस वेसल को बालकनी या घर के पोर्च एरिया में लटकाया जाता है, जिससे इसको हवा मिले और कंपोस्ट खाद आसानी से बने। इसका अविष्कार गत वर्ष किया गया है।

ऐसे करता है काम
डेढ़ फीट लंबे नाइलोन नेट को गोलाई में सिलकर नीचे से बांध दिया जाता है। अंदर प्लास्टिक की डलिया रखी जाती है। कचरे को छोटे-छोटे टुकड़े में काट कर डलिये में भरा जाता है। फिर इसमें करीब 100 ग्राम केचुए को डाल दिया जाता और सड़े कचरे पर गोबर डालकर ढंक दिया जाता है और ऊपर से पानी का छिड़काव किया जाता है। इसके माध्यम से 30 से 40 दिन में जैविक खाद बन जाती है। इसके पूर्व जैविक खाद निर्माण जमीन पर बड़े गड्ढों में ही संभव था।

चार से पांच घंटे में हो जाती है मिट्टी की जांच
इंडियन इंस्टीट्यूट आफ स्वाइल साइंस की टीम द्वारा बनाए गए मृदा परीक्षक द्वारा मृदा में पाए जाने वाले 15 मुख्य पैरामीटर्स जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस, कैल्शियम, पोटेशियम को मापा जाता है, क्योंकि ज्यादातर किसान जब स्वाइल टेस्टिंग के लिए भेजते हैं तो उसमें 10 से 15 दिन का समय लगता है लेकिन मृदा परीक्षक से चार से पांच घंटे में ही मृदा में आवश्यक पोषक तत्व ज्ञात किया जा सकता है, इसकी कीमत मात्र 7,200 रुपये है और दसवीं पास व्यक्ति इसका प्रयोग आसानी से कर सकता है।

‘एक्सेल डिकंपोजर’ करेगा पराली जलाने की समस्या का हल
इंस्टीट्यूट की टीम पराली की समस्या से निजात पाने के लिए ‘एक्सेल डिकंपोजर’ लेकर आई है। देश की सबसे प्रमुख समस्या पराली जलाने की है, जिससे वायु प्रदूषण होता है। साथ ही श्वसन तंत्र भी कुप्रभावित होता है, लेकिन एक्सेल डीकंपोजर से पराली जलाने की समस्या से निजात पाया जा सकता है। जिसमें डीकंपोज कैप्सूल को पानी में मिलाकर खेतों में छिड़काव किया जाता है, जिससे अनावश्यक तत्व अपने आप डीकंपोज हो जाते हैं। इन सभी उपककरणों को इंस्टीट्यूट में देखा और खरीदा भी जा सकता है।

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