समुद्री जलस्तर में वृद्धि के बेहतर अनुमान के लिए ग्लेशियरों को सुन रहे वैज्ञानिक
वैज्ञानिक, परंपरागत रूप से सैटेलाइट फोटोग्राफी या उपग्रह इमेज से पता लगाते हैं कि किस दर से ग्लेशियर गायब हो रहे हैं। लेकिन ये तरीके हमें यह नहीं बताते कि आखिर सतह के नीचे क्या चल रहा है। इसी के लिए वैज्ञानिक अब ग्लेशियरों के पिघलने की ध्वनियों को सुन रहे हैं ताकि समुद्र के जलस्तर में वृद्धि का बेहतर अनुमान लगाया जा सके। नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर के साथ अन्य संस्थान पिछले पांच सालों से इस मिशन पर काम कर रहे हैं।
हाइड्रोफोन के जरिए सुनी जा रही ध्वनियां:
ग्लेशियरों की बर्फ लगातार धीरे-धीरे चटकती रहती है। यह प्रक्रिया आमतौर पर गर्मियों में मई से अगस्त तक होती है। इस दौरान ग्लेशियरों के आसपास का इलाका अस्थिर और खतरनाक हो जाता है क्योंकि बर्फ के बड़े टुकड़े अक्सर टूटकर हिमखंडों के रूप में पानी में गिरते हैं। इसलिए शोधकर्ता दूरस्थ रूप से ध्वनियों की निगरानी के लिए ग्लेशियरों से लगभग आधा किमी दूर पानी के नीचे हाइड्रोफोन लगा रहे हैं।
नई तकनीक और रोबोट किए जा रहे तैयार:
ग्लेशियरों के टूटने की ध्वनियों को सुनने और पानी की लवणता आदि की माप लेने के लिए नई तकनीक विकसित की जा रही है। ध्वनियों की रेकॉर्डिंग और अन्य माप के लिए शोधकर्ताओं को पहले की तुलना में ग्लेशियरों के काफी नजदीक जाना होगा। इसके लिए विशेषज्ञ खास रोबोट तैयार कर रहे हैं, जो सेंसर लगाकर डेटा एकत्र करेंगे। समुद्री जलस्तर में वृद्धि के सटीक अनुमान से ऐसे शहर जो तटीय इलाकों में स्थित हैं, उन्हें प्रभावी योजनाएं बनाने में मदद मिलेगी।