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ठेंगड़ी से विवाद के बाद भाजपा ने काट दिया था हुकुम कछवाय का टिकट, जटिया यहां 7 बार चुनाव जीते


मैं भगवान महाकाल की नगरी और मप्र की धर्मधानी उज्जैन लोकसभा सीट हूं। यहां सब कुछ बाबा महाकाल की कृपा पर निर्भर है। पहला चुनाव 1952 में हुआ, तब कांग्रेस के राधेलाल व्यास जीते। इसके बाद वे 1957 और 1962 में भी जीते। इसके बाद 1967 में यह सीट अजा के लिए आरक्षित ​हो गई। इसके बाद से यहां भाजपा के मातृ संगठन भारतीय जनसंघ क़क़र जनता पार्टी के उम्मीदवार चुनाव जीतते रहे हैं।

संघ के वरिष्ठ प्रचारक दत्तोपंत ठेंगड़ी से विवाद के बाद भाजपा ने हुकमचंद कछवाय का टिकट काट दिया था और 1980 में सत्यनारायण जटिया को टिकट दिया और वे जीते। 1984 को छोड़ 1989, 1991, 1996, 1998,1999 और 2004 में जटिया ही यहां से संसद तक पहुंचे। जटिया देश में भाजपा की केंद्र सरकार में श्रम मंत्री बने और संसद में मालवीय पगड़ी पहनकर संस्कृत में शपथ लेने वाले पहले सांसद थे। जटिया यहां से दो बार चुनाव भी हारे। पहला चुनाव 1984 में कांग्रेस के सत्यनारायण पवार से और दूसरा 2009 में कांग्रेस के प्रेमचंद गुड्डू से।

1967 में हुए आरक्षण के बाद कांग्रेस ने मेरी सीट पर 1984 और 2009 में जीत दर्ज कराई। 2019 में उज्जैन से सांसद रहे अनिल फिरोजिया पर भाजपा ने फिर भरोसा जताया है। हालांकि वे 2018 में विधानसभा चुनाव में तराना से हार गए थे। उन्हें कांग्रेस के महेश परमार ने हराया था। लेकिन इस बार के लाेकसभा चुनाव में परमार और फिरौजिया आमने- सामने है। यहां हुए 17 चुनावों में से 12 चुनाव भाजपा या उसके मातृ संगठन जनता पार्टी व भारतीय जनसंघ के प्रत्याशियों ने जीते।

उज्जैन लोकसभा में आठ विधानसभा सीटें हैं। जिनमें से छह भाजपा और दो कांग्रेस के पास हैं। उज्जैन संसदीय सीट में शामिल उज्जैन दक्षिण से विधायक डाॅ. मोहन यादव मप्र के मुख्यमंत्री है। ऐेसे में भाजपा ने इस सीट को बड़े अंतर से जीतने के लिए ताकत लगाई हुई है। भाजपा यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा और विकास कार्यों को सामने रखकर चुनाव लड़ रही है। वहीं कांग्रेस यहां महाकाल लोक में हुए घोटाले, बेरोजगारी और महंगाई के मुद्दे को लेकर जनता के पास जा रही है।

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