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निर्धारित दाम से अधिक में मिल रहे स्टॉम्प नोटरी के बदले एवजी निपटा रहे शपथपत्र कीर्ति राणा (वरिष्ठ पत्रकार)इंदौर


निर्धारित दाम से अधिक में मिल रहे स्टॉम्प
नोटरी के बदले एवजी निपटा रहे शपथपत्र
कीर्ति राणा (वरिष्ठ पत्रकार)इंदौर

कलेक्टोरेट में कतिपय नोटरी द्वारा अपने एवजियों के भरोसे शपथपत्र का काम छोड़े जाने से इस काम की गंभीरता का फर्जीवाड़े से मखौल उड़ रहा है। इसी तरह विभिन्न सरकारी दस्तावेज, रजिस्ट्री आदि में लगने वाले स्टॉम्प की निर्धारित से अधिक दाम पर बिक्री पर न तो जिला न्यालय का अंकुश है न ही जिला कोषालय का । अधिक दाम पर होने वाली इस बिक्री को लेकर कतिपय वेंडरों का यह भी आरोप है कि जिला कोषालय में पदस्थ स्टॉफ के कतिपय कर्मचारियों की ‘चाय-पानी’ की फरमाइश पूरी करने की मजबूरी में स्टॉम्प अधिक दाम पर बेचना पड़ते हैं।

गौरतलब है कि नोटरी, कलेक्टोरेट, जिला कोर्ट और हाइकोर्ट और रजिस्ट्रार कार्यालय सहित उप कार्यालयों में बैठते हैं।कलेक्टोरेट में विभिन्न कार्यों के लिए लगाए जाने वाले शपथ पत्र बनाने वाले 8 नोटरी हैं इनमें अधिकांश तो नियमानुसार काम कर रहे हैं लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो एवजियों के भरोसे काम निपटा रहे हैं।कलेक्टर आशीष सिंह को सूचना मिली थी कि कलेक्टोरेट में जो नोटरी हैं उनमें से कुछ के एवजियों द्वारा फर्जीवाड़े किया जा रहा है।
 कलेक्टर ने जिला पंजीयन कार्यालय के अधिकारियों को आकस्मिक जांच के लिए भेजा था। जांच करने गए एक अधिकारी ने मौके पर जाने से पहले ही एक वेंडर को फोन लगा कर स्टॉम्पप की खरीदी-बिक्री को लेकर सवाल-जवाब कर लिए।इससे सतर्क हुए वेंडरों ने कलेक्टोर में शपथपत्र आदि बनाने वाले नोटरी को भी सतर्क कर दिया।

पंजीयन अधिकारियों ने वैंडरों से पूछताछ कर जांच आदेश की खानापूर्ति कर ली लेकिन नोटरी की जगह उनके एवजी द्वारा किए जा रहे सत्यापन कार्य की असलियत जानने की कोशिश नहीं की।नतीजा यह कि कार्य दिवस के साथ अवकाश वाले दिनों में भी अधिकृत नोटरी समय पर पहुंचे या नहीं उनके एवजी शपथपत्र बनाने, रजिस्टर में नंबर चढ़ाने से लेकर नोटरी के साइन कर के शपथपत्र जारी करने का काम धड़ल्ले से कर रहे हैं।

हर आवेदक चाहता है कि बिना समय खर्च किए उसका काम फटाफट हो जाए इसलिए वह यह भी इस झंझट में भी नहीं पड़ना चाहता कि शपथपत्र तैयार करने वाला अधिकृत भी है या नहीं।इस वजह से भी नोटरी ने इन एवजियों को छूट दे रखी है, जबकि इनका काम नोटरी के काम में सहयोग करना होना चाहिए। होना यह चाहिए कि जिन नोटरियों को शासन ने नोटरी लायसेंस दिया है उन्हें स्वयं मौजूद रहना चाहिए और शपथ ग्रहिता के समक्ष ही उन्हें शपथपत्र पर हस्ताक्षर करना चाहिए जबकि एवजियों द्वारा यह कार्य किया जा रहा है। जिला कोर्ट में भी कुछ नोटरी के यहां ऐसा ही फर्जीवाड़ा चल रहा है।

स्टॉम्प की बिक्री में भी खेल
स्टॉम्प वेंडरों द्वारा स्टाम्प ब्लेक में बेचे जाने का खेल भी खूब चल रहा है।ज्यादातर कम कीमत वाले स्टॉम्प की बिक्री अधिक होती है। 50 रु वाला स्टॉम्प 70 रु और 100 रु वाला स्टॉम्प 125 रु तक में खरीदना आवेदक की मजबूरी है।क्योंकि वैंडरों का एक ही जवाब रहता है छोटे स्टॉम्प की शार्टेज चल रही है।इसी प्रकार ई स्टॉम्प भी ब्लेक में बेचे जाते हैं।रजिस्ट्री आदि में बड़े (अधिक मूल्य वाले ही लगते हैं)  एक हजार रु मूल्य का स्टॉम्प 1200 से 1400 तक
तक में मिल रहा है। इंदौर में स्टॉम्प बिक्री से जुड़े वैंडरों का यह भी आरोप है कि जिला कोषालय के कतिपय स्टॉफ द्वारा स्टॉम्प जारी करने के बदले ‘चाय-पानी’ की मांग पूरी करने के कारण घाटा पूरा करने के लिए हमें स्टाम्प महंगी कीमत पर बेचना पड़ते हैं।जिला कोषालय की व्यवस्था पारदर्शी होना जरूरी है।

नियम तो ये भी हैं
शासन के नियम तो यह भी हैं कि स्टॉम्प विक्रेता और नोटरियों को अपने फोटो युक्त लायसेंस की कॉपी अपने कार्यस्थल या बोर्ड पर अनिवार्य रूप से चस्पा करना चाहिए।इस नियम का कलेक्टोरेट, जिला और हाईकोर्ट परिसर, रजिस्ट्री कार्यालय में पालन नहीं हो रहा है और कई जगह तो स्वयं नोटरी उपस्थित भी नहीं रहते।

यही नहीं कुछ नोटरियों द्वारा एक की अपेक्षा दो-तीन जगह नोटरी रजिस्टर रख रखे हैं।खुद नोटरी तो एक जगह बैठता है बाकी जगह उसके एवजी काम निपटाते रहते हैं।

कुकिंग गैस एजेंसियों की तरह स्टाम्प वेंडरों को भी हर दिन बोर्ड पर यह प्रदर्शित करना अनिवार्य है कि उनके पास बचे स्टॉम्प कितनी मात्रा में, कितनी कितनी राशि के शेष बचे हैं। इसकी संख्या व कीमत विक्रय स्थल पर प्रदर्शित करना चाहिए।इस नियम का पालन कराने में भी जिला पंजीयन कार्यालय उदासीन बना हुआ है।

नोटरियों की जांच का अधिकार जिला न्यायाधीश को है।वो अपने अधीनस्थ को जांच के लिए निर्देशित कर सकते हैं।लंबे समय से प्रशासन, जिला न्यायालय, कोषालय अधिकारी और पंजीयन कार्यालय द्वारा जांच नहीं किए जाने से यह सारा फर्जीवाड़ा एक तरह से रुटीन वर्किंग का हिस्सा बन गया है।

‘कोषालय से छोटे वैंडरों को सहयोग नहीं सारी व्यवस्था जब ऑनलाइन है तो राहत क्यों नहीं’

एक तरफ तो व्यवस्था ऑनलाइन करने का दावा किया जाता है फिर भी दस-दस दिन तक स्टॉम्प उपलब्ध नहीं कराए जाते।कोर्ट फीस के टिकट बाकी स्टॉफ के पास मिल जाते हैं।बड़े स्टॉम्प मैडम अपने पास ही रखती हैं।बड़े स्टॉम्प निर्धारित से अधिक में दिए जाने का कारण कोषालय स्टॉफ का भी ‘चाय-पानी’ का दबाव बनाते रहना है।

व्यवस्था में सुधार नहीं होने से छोटे वैंडर तो धंधा कर ही नहीं पा रहे हैं।मैं चालीस साल से वैंडरी कर रहा हूं। अध्यक्ष का दायित्व सम्हालने के बाद से तत्कालीन वित्त मंत्री मलैया से लेकर पूर्व सीएम शिवराज सिंह से कई बार मिल चुके हैं कि वैंडरों का कमीशन दो से बढ़ा कर पांच प्रतिशत करें।कोई सुनवाई नहीं। वैंडर अपने कमीशन में से कोषालय वालों की ‘चाय-पानी’ का कब तक ध्यान रखेगा।

दूसरी परेशानी यह है कि जिन नोटरी के लायसेंस अन्य क्षेत्रों के बने हैं उन सब ने भी अपनी दुकानें जिला कोर्ट के आसपास लगा ली हैं।जबकि यह नियम विरुद्ध है, घर से भी काम कर रहे हैं।लायसेंसी वैंडर कैसे धंधा करें।यही नहीं जो नोटरी हैं उनमें से कई ने एवजी के भरोसे कमाई में लगे हैं। अपनी साइन वाले शपथपत्र एवजियों को एडवांस में दे कर रखते हैं।एवजी बस सील लगा कर शपथपत्र तैयार कर देते हैं। कोषालय की मनमानी का ही नतीजा है कि वैंडरों की समस्या निदान पर सोचा नहीं जाता। यदि वैंडर स्टाम्प ईमानदारी से बेचे तो जहर खाने की पुड़िया भी नहीं ले पाए।
नोटरी को जहां का लायसेंस मिला है उसे काम भी वहीं करना चाहिए लेकिन कुछ नोटरी घर, दुकान, कलेक्टोरेट, जिला कोर्ट से लेकर रजिस्ट्री कार्यालय इन सब जगहों पर चार रजिस्टर चला रहे हैं।कोषालय से लेकर जिला प्रशासन तक को सब जानकारी है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की जाती।स्टॉम्प वैंडर के रजिस्टर की चैकिंग, जप्ती की तरह नोटरी के नियम विपरीत चल रहे रजिस्टर की जांच, नोटरी पर भी तो कार्रवाई करना चाहिए।
-सुरेश चौहान, अध्यक्ष इंदौर जिला स्टॉम्प वेंडर संघ
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‘जिला कोषालय में सप्ताह में दो बार चालान भरने की सुविधा, सरकार का जोर ई-स्टॉम्प पर है’

इंदौर जिला कोषालय में सप्ताह में अब दो बार चालान भरने की सुविधा बुधवार, शनिवार को दी जा रही है।भोपाल, ग्वालियर में तो स्ट्रांग रूम सप्ताह में एक दिन खुलता है।हमने वैंडरों को इतना भी बोल रखा है कि संडे के दिन भी ड्रॉप बॉक्स में चालान जमा कर सकते हैं। संभाग स्तर का नोडल ऑफिस होने से जिला कोषालय पर 350  वैंडर और 8 जिलों का दबाव रहता है।यह सही नहीं है कि समय पर वैंडरों को स्टॉम्प उपलब्ध नहीं होते हैं। स्टॉम्प का कोई संकट नहीं है।अब सरकार का सारा जोर ई-स्टॉम्प को बढ़ावा देने पर है।कागज का उपयोग कम करने के लिए संपदा पोर्टल द्वारा ई स्टॉम्प के लिए प्रोत्साहित किया जाने का लक्ष्य है। इसीलिए रजिस्ट्रार कार्यालय द्वारा भी वैंडरों को लायसेंस देने में उदारता बरती जा रही है।
-नेहा गोयल, उप कोषालय अधिकारी।
पवन भाई

‘मुझे भी शिकायत मिली हैं’
इस संबंध में वरिष्ठ जिला पंजीयक दीपक शर्मा ने खुलासा फर्स्ट से चर्चा में कहा कि मुझे भी शिकायतें मिली हैं। नोटरी को जिस जगह के लिए लायसेंस दिया गया है उस स्थान की अपेक्षा वे मनमाने स्थान पर काम संचालित कर रहे हैं।कतिपय स्टॉम्प वेंडर भी इस नियम का पालन नहीं कर रहे हैं। नोटरी पर सीधा हमारा कंट्रोल नहीं है, वे सीधे डिस्ट्रिक्ट जज के कंट्रोल में रहते हैं।कंट्रोलिंग पॉवर डीजे का होने से हमने समक्ष में मिल कर उनसे निवेदन भी किया है।हमारे विभागीय अधिकारियों को भी सर्कुलर जारी किया है। हम एक सीमा तक ही बोल सकते हैं।वेंडरों पर तो समय समय पर विभाग एक्शन भी लेता है।

 

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