top header advertisement
Home - आपका ब्लॉग << हिंदी पत्रकारिता में ‘भास्कर’ के जो तेवर हैं एक तरह से इंदौर एडिशन के बाद उसे व्यापक पहचान मिली है-कीर्ति राणा-वरिष्ठ पत्रकार

हिंदी पत्रकारिता में ‘भास्कर’ के जो तेवर हैं एक तरह से इंदौर एडिशन के बाद उसे व्यापक पहचान मिली है-कीर्ति राणा-वरिष्ठ पत्रकार


हिंदी पत्रकारिता में ‘भास्कर’ के जो तेवर हैं एक तरह से इंदौर एडिशन के बाद उसे व्यापक पहचान मिली है।रमेश जी के मीडिया मुगल बनने की इबारत भी इंदौर एडिशन ने लिखी। भास्कर इंदौर सहित विभिन्न संस्करणों में 28 साल रहने के दौरान बड़े भाई साब और बाद में चेयरमेन सर को भी नजदीक से खूब देखा-समझा, वो सारी बातें उनकी सातवीं पुण्यतिथि पर याद आ रही हैं।
—-
"हम बड़े भाई साब" बोल रहे हैं .........!
कीर्ति राणा-वरिष्ठ पत्रकार

"हम बड़े भाई साब बोल रहे हैं' फ़ोन की घंटी बजने पर हैलो के जवाब में कई बार दूसरी तरफ़ से यही शब्द सुनने को मिलते थे। और सहज ही समझ आ जाता था कि रमेशजी का फ़ोन है।
भोपाल में तब संत मोरारी बाप की कथा (2017 में) भास्कर परिवार ने आयोजित की थी।उसका प्रसारण भी टीवी पर चल रहा था। एक दोपहर में टीवी पर चैनल बदलते  हुए अचानक अंगुली रुक गई थी। मोरारी बापू की रामकथा के प्रसारण में 'बड़े भाई साब' नज़र आ रहे थे। मैंने उत्साह से घर के बाक़ी सदस्यों को बताया वो बैठे हैं रमेश जी। इधर उनके लड़के बैठे हैं।
मोरारी बापू तब व्यासपीठ से कह रहे थे सुधीर भाई के साथ अग्रवाल जी के घर पर आज सुबह सत्य, प्रेम, करुणा के नाम से तीन पौधे लगाए हैं। आप सब भी तीन पौधे लगाएँ।किस ने सोचा था कि पाँच दिन बाद सत्य, प्रेम, करुणा का वाहक राम कथा श्रवण से मिले मोक्ष का भागी हम सब को अवाक छोड़ इस तरह अनंत यात्रा पर चला जाएगा।
दैनिक भास्कर के अट्ठाईस साल में कई मौक़ों पर बडे़ भाई साब के साथ रहने का मौक़ा मिला।शुरुआती वर्षों में मनमोहन जी संभालते थे इंदौर भास्कर में सारी व्यवस्था। नईदुनिया जैसे वटवृक्ष को खोखला करने में मनमोहनजी ने रात दिन एक कर दिया था।
सुधीर जी ने रामनवमी के दिन मोरारी बापू से जो भावना व्यक्त की एक तरह से इंदौर में भास्कर की शुरूआत के रूप में बड़े भाई साब सत्य, प्रेम, करुणा के पौधे तब ही लगा चुके थे। मैंने उनके कार्य व्यवहार में इन तीनों गुणों को देखा है।
भास्कर में कारपोरेट कल्चर हावी होने के बाद बाक़ी स्टॉफ भले ही उन्हें चेयरमेन सर कहता रहा, उनके पीए श्याम सुंदर जी से जब भी बात होती अपनी जबान ऐसी ज़िद्दी कि बड़े भाई साब ही कहना पसंद करती थी। तब मैं मुंबई को 31 दिसंबर 82 को अलविदा कह "लौट के बुद्धु घर को आए" की तर्ज़ पर पारिवारिक मजबूरियों के कारण इंदौर लौट आया था।
मित्र रमण रावल के साथ प्रभात किरण में शुरूआत की थी। उनकी सलाह पर भास्कर के लिए सेंट्रल होटल (रामपुरावाला बिल्डिंग) में बड़े भाई साब को गया था आवेदन देने लेकिन थोड़ी सी बातचीत के बाद ही उन्होंने चाय ख़त्म होने तक तो साढ़े छह सौ रु तनख़्वाह पर नियुक्ति दे दी।अगले दिन कुछ ऐसे हालात बने कि मैं कृष्णपुरा मार्ग स्थित मायाबाजार बिल्डिंग में चल रहे भास्कर कार्यालय में ज्वाइन करने गया ही नहीं।
एक सप्ताह बाद फिर बड़े भाई साब सेंट्रल होटल आए।हाज़िरी रजिस्टर में मेरा नाम चढ़ा हुआ लेकिन एबसेंट देख कर रमण जी से कारण पूछा। रमणजी ने मुझे मैसेज किया कि रमेश जी याद कर रहे हैं, मिल तो ले।मिलने गया, उन्होंने कारण पूछा, मैंने सारा घटनाक्रम बताया, मेरी सच्चाई से वो प्रभावित हुए या नहीं मैं उनके "सत्य" से चमत्कृत था। भास्कर में 15 फ़रवरी 83 से (अख़बार शुरू हुआ पाँच मार्च 83 से) अपनी शुरुआत हो गई।
सत्य दर्शन : लोकार्पण में केंद्रीय मंत्री एचकेएल भगत, तत्कालीन मुख्यमंत्री (स्व)अर्जुन सिंह, सांसद कमलनाथ, मप्र के उद्योग जनसंपर्क मंत्री (स्व) चंद्र प्रभाष शेखर आए।उद्घाटन पश्चात बड़े भाईसाब ने सिटी टीम को बुलाया, हिदायत दी ‘जे भाईसाब’ उद्घाटन हो गया।अब यह किसी मंत्री, नेता  या अग्रवाल समाज का नहीं, इंदौर के उन पाठकों का अख़बार है जो दो रुपए देकर ख़रीदते हैं। हमें समाज वाले बुलाएँगे, जे भाई साब आप (मुझे इशारा करते हुए) उन सारे कार्यक्रमों को कवर करना, हमारा फोटो मत छापना, समाज के लोगों के नाम-फोटो छपें यह याद रखना। जैसे नईदुनिया को जैन समाज का कहते हैं तो अपने पाठकों में यह मैसेज भी ना जाए कि भास्कर अग्रवाल समाज का अख़बार है। तब नईदुनिया नंबर वन अख़बार था, बड़े भाई साब स्टाफ़ मीटिंग में हर बार यही कहते, हम उसका मुक़ाबला नहीं कर सकते। हम नंबर दो बनना चाहते हैं, फिर नंबर वन बनने में दिक़्क़त नहीं आएगी।  
करुणा दर्शन : इंदौर भास्कर में तब शवयात्रा, उठावने कुछ समय तो फ्री में छपे, बाद में शुल्क लेने लगे। इसका अग्रवाल समाज सहित कई लोगों ने विरोध भी किया। समारोह में वे ख़ुद इस बात का ज़िक्र करते और यह भी बताते कि इस मद में जितना पैसा साल भर में आएगा, उतना ही पैसा अपनी तरफ़ से मिला कर यह पैसा सामाजिक कार्यों में लगाएँगे। अग्रवाल समाज में तब कुंजीलाल गोयल जिस भी व्यक्ति की मदद करने का अनुरोध करते बड़े भाई साब बिना पूछताछ के रुपए/विज्ञापन/सरकार के स्तर पर उदारता दिखाते थे।
प्रेम दर्शन : एक बार बड़े भाई साब तब मुझ पर बुरी तरह नाराज़ हुए थे, जब मैंने डा नागपाल की सलाह पर ‘नईदुनिया’ में  जाने के लिए इंटरव्यू दिया, सिलेक्शन नहीं हुआ। सिटी चीफ (स्व) विनय लाखेजी ने नमक मिर्च लगाकर सारी जानकारी उन तक पहुँचा दी।मुझे दस दिन के जबरिया अवकाश पर भेजने का आदेश (स्व) रोमेश जोशी ने निकाल दिया।दस दिन की अवधि में ही दिसंबर महीने की एक बेहद ठंडी सुबह अन्नू (अनिल राठौर) के साथ स्कूटर से भोपाल पहुँचे। ऑफिस में रमेशजी से मिला, वो ख़ूब नाराज़ हुए। फिर ठंडे हुए, उन्हें पता था मेरी नवंबर में शादी हुई है, कहा हम इंदौर आएँगे मिलना। उनसे मिला, लाखे जी को बुलाया कि कीर्ति आज से तुम्हारे साथ काम करेगा। मैंने लाखे जी के मुँह पर ही बड़े भाई सा से कहा, इनके साथ काम नहीं करूँगा, ये आप से रोज़ मेरी शिकायत करेंगे। मेरे कारण आप को टेंशन होगा। उन्होंने सागरमल मौला जी को बुलाया, समझाया। अगले दिन सुधीर जी (बाद में जो एमडी सर हो गए) ने डाक डेस्क पर काम करने संबंधी आदेश जारी कर दिए।  
सदैव मुस्कुराता चेहरा और जे भाईसाब के उद्बोधनों से बात की शुरूआत करने वाले रमेश जी की लंबे समय तक तो क्रीम और सफ़ेद रंग वाला सफ़ारी सूट ही पहचान रही। सार्वजनिक-सामाजिक समारोह में दान, स्कूल निर्माण, आश्रम निर्माण के लिए सबसे पहले दान राशि की घोषणा कर अन्य को समाज कार्य के लिए प्रेम से राज़ी कर लेना ये उनकी ख़ासियत थी।
इंदौर को बनाया सामाजिक एकता का केंद्र
     रमेश जी ने भास्कर की इंदौर से शुरुआत तो की ही अन्य राज्यों में राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, बिहार आदि में भास्कर, दिव्य भास्कर के एडिशन का सूत्रपात भी इंदौर से हुआ। यही नहीं इंदौर को सामाजिक एकता का सेंटर भी बनाया।(स्व) कुंजीलाल गोयल को यदि रमेश जी को इंदौर के अग्रवाल समाज सहित अन्य सामाजिक संगठनों से मिलाने का श्रेय है तो इंदौर से वैश्य समाज का गठन और इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने की  सोच रमेश जी की रही है।वैश्य समाज में जो पंद्रह से अधिक समाज समाहित हैं उन अग्रवाल, माहेश्वरी, विजयवर्गीय, दिगंबर और श्वेतांबर समाज, खंडेलवाल, चित्तौड़ा, नागर, मेड़तवाल, नीमा, पोरवाल, मौड़ समाज, वीशा नागर आदि समाज में रोटी (व्यावसायिक) संबंध तो थे ही रमेश जी ने इन सभी समाजों के प्रमुखों की बैठक में इन्हें राजी किया कि रोटी के साथ बेटी के संबंध को भी जोड़ें ताकि हमारी बेटियों का भविष्य सुरक्षित रहे और रोटी-बेटी के संबंध से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी वैश्य समाज की एकता और मजबूत हो।  
भास्कर के शुरुआती दिनों में जब वे संपादकीय टीम की बैठक लेते या समाज के कार्यक्रमों में आते-जाते तो उनका यह सुझाव भी रहता था कि जितने भी समाजों के प्रेसनोट आते हैं उनके पदाधिकारियों के नाम-नंबर रजिस्टर में नोट कर लेना। जब भी समाजों के प्रतिनिधियों की बैठक आयोजित करना होती कई बार मेरी ड्यूटी रहती थी इस रजिस्टर के आधार पर समाज प्रमुखों को निमंत्रित करने की।
सामूहिक और विधवा-विधुर विवाह की शुरुआत
    दिखावे वाली शादियों में होने वाली फिजूलखर्ची रोकने के लिए समाज में सामूहिक विवाह की शुरुआत इंदौर से शुरु करने का सिलसिला कुंजीलाल गोयल ने रमेशजी के आतिथ्य में इंदौर से ही शुरु किया।बाद में युवक-युवकी परिचय सम्मेलन की कमान शिव जिंदल, संजय मंगल, राजेश गर्ग की तिकड़ी ने संभाल ली।आज देश भर में विभिन्न समाजों में सामूहिक विवाह, विधवा-विधुर, तलाकशुदा सम्मेलन, और विवाह भोज में लिमिटेड आयटम का जो सिलसिला चल पड़ा है उसके पीछे तब रमेशजी की सोच यह थी कि धन कुबेर तो शादी में करोड़ो खर्च कर देंगे लेकिन सामान्य परिवार महंगी शादी, लेन-देन का बोझ कैसे वहन कर पाएंगे।इसलिए एक जाजम पर ही सारे रीति रिवाज ब्याह आदि किए जाने चाहिए।
समाज से माफी भी मांगी
    समाज में सामूहिक विवाह की प्रथा प्रारंभ करने वाले रमेश जी अपने तीनों बेटो, बेटी की शादी में खुद के बनाए नियमों का पालन नहीं कर पाए थे।बड़े बेटे सुधीर के विवाह पश्चात इंदौर में समाज की बैठक में उन्होंने सार्वजनिक रूप से माफी मांगने के साथ मजबूरी भी बताई कि भास्कर और अन्य उद्योगों के चलते सार्वजनिक जीवन में रिश्तों का फैलाव होने के कारण उनके लिए नियम पालन संभव नहीं हो सका। समाजजनों ने उनकी इस सोच और स्वीकारोक्ति को को समझा भी।
केंद्रीय अग्रवाल समिति का गठन
     आज जो राष्ट्रीय स्तर पर अग्रवाल समाज के विभिन्न संगठन एकजुट होकर समाज और देश सेवा में लगे हैं  ‘80 के दशक में ऐसा नहीं था। इंदौर में ही अग्रवाल समाज के 50 से अधिक संगठन ‘अपनी ढपली-अपना राग’ अलापते रहते थे।रमेश जी ने इन सभी संगठनों की बैठक ली, केंद्रीय समिति के गठन का सुझाव रखा और इसे सहर्ष स्वीकारा गया।तब
से अग्रसेन जयंती पर इंदौर से केंद्रीय समिति के चल समारोह की शुरुआत हुई जिसमें वर्षों तक रमेश जी भी शामिल होते रहे।
बेटा हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट भी होती है’
    एक किस्सा याद आता है।सिटी चीफ के ग़ुरूर में मैंने कई लोगों से पंगा भी लिया। समाज के ही एक सज्जन प्रेस नोट लेकर आए, वो अखबार की वर्किंग से अनभिज्ञ थे लेकिन रमेश जी से आत्मीयता के चलते बार-बार यह अनुरोध करते रहे कि भाई पेज वन पर छप जाए। मैं खबर लिखने के साथ ही हां-हूं  करता रहा। वो समझ गए कि बात अनसुनी की जा रही  है। अब उन्होंने कहा मैं रमेश भाईसाब से फोन करा दूं क्या आप को। बस, अपन ने प्रेस नोट-फोटो उन्हें थमाते हुए कह दिया अब जब रमेश जी का फोन आएगा तब ही छापेंगे।वो सफाई देते रहे लेकिन बातत नहीं बनी।
कुछ दिनों बाद रमेश जी इंदौर आए, उनसे मिलने वालों में वह सज्जन भी थे।मेरी शिकायत होना तय थी।रमेश जी ने बुलाया, उन्हें मैंने पूरा घटनाक्रम बताया। मुस्कुराते हुए बोले बेटा याद रखा करो हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट भी है।रमेश जी ने उन सज्जन को भी समझाया जे भाईसाब हमने तो अखबार ही आप सब के लिए निकाला है।मैं खुद अपनी खबर-फोटो के लिए नहीं कहता। कौनसी खबर, कहां लगाना है सब इन लोगों पर छोड़ रखा है।
* शीघ्र ही प्रकाशित होने वाली किताब “किस्से कलमगीरी” का एक अध्याय ।

Leave a reply