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घोटालो का इंदौर मॉडल हम फिर हो गए नंबर वन ! - कीर्ति राणा( वरिष्ठ पत्रकार) इंदौर ।


घोटालो का इंदौर मॉडल 

हम फिर हो 

गए नंबर वन ! -कीर्ति राणा वरिष्ठ पत्रकार इंदौर ।

 

जब हम स्वच्छता में सतत सात बार नंबर वन रहने पर कालर ऊंची कर के चल सकते हैं तो इस बात पर फूल कर कुप्पा क्यों नहीं होना चाहिए कि हमारी नगर निगम अभूतपूर्व घोटाले में भी नंबर वन होने के साथ देश की बाकी नगर निगमों के लिए महाघोटाले का रोल मॉडल बन गई है।विकास के मामले में मोदी का गुजरात मॉडल, कमलनाथ का छिंदवाड़ा मॉडल याद किया जाता है। भाजपा प्रत्याशी ने निर्विरोध निर्वार्चित होने के लिए जो हथकंडे अपनाए उसके बाद भाजपा का सूरत मॉडल भी चर्चा में आ गया।स्वच्छता में सतत सात बार नंबर वन रहने से प्रधानमंत्री का प्रिय इंदौर भला कैसे पीछे रहता।देश की बाकी स्वायत्त संस्थाओं के लिए ड्रेनेज लाइन ठेके में महाघोटाले वाले नवाचार से इंदौर मॉडल भी स्थापित हो गया है।

 

नगर निगम ने कचरे से कंचन बनाने के प्लांट लगाना शुरु किए, प्रधानमंत्री ने तो नाली से गैस की खोज कर के चाय-पकोड़े बनाने वालों को महंगी गैस से राहत का रास्ता ही खोजा, निगम के ठेकेदारों ने तो नाली से नोट छापने का हुनर दिखा कर इंदौर का नाम रोशन कर दिया। । 

प्रधानमंत्री तो अपने भाषणों में सफाई और इंदौर के खाऊ ठीयों को गिनाते रहे हैं अब उनके भाषण में नगर निगम की यह गौरव गाथा भी शामिल होना चाहिए। हमारा संविधान सभी जाति धर्म वालों को रोजगार-धंधा करने की आजादी देता है।यह बात अलग है कि राजनीति में किसी एक वर्ग विशेष के वोटों के लिए ‘पुष्पा झुकेगा नहीं’ जैसी अकड़ भी रहती है।घोटाला उजागर होने के बाद से सुरसा की तरह बढ़ते जा रहे आंकड़े गंगा-जमुनी तहजीब का भी बखान कर रहे हैं कि जब बात लूट के माल में भागीदारी की हो तो फिर यह बात मायने नहीं रखती कि ठेकेदार किस जाति-सम्प्रदाय का है।

 

अभी वाली निगम परिषद को अपने कपड़ों से ये छींटें झटकारने का हक है कि घोटाला तो पहले से चल रहा था।हम तो इस गंदी नाली को साफ करने में जुटे हैं।पिछली परिषद की मुखिया और उनकी मंडली के अध्यक्षों, पार्षदों, रणनीतिकारों ने तो अब तक इसलिये जुबान नहीं हिलाई है कि हमारा वास्ता तो पुरस्कार जीतने, सम्मान पाने से रहा है।भाजपा ने इस चुनाव में मंदिर, डबल इंजन की सरकार की उपलब्धियां भुनाने और राहुल गांधी के भाषणों में ठिठौली तलाशने वाली ट्रोल आर्मी को रोजगार पर लगा रखा है तो कांग्रेस के पास गिने-चुने औद्योगिक घरानों पर प्रेम लुटाने, बैंको को चूना लगाने वालों पर कृपा बरसाने और प्रधानमंत्री को गपोड़ा कह कर हर रोज मजाक बनाने के अवसर हैं।मजेदार बात तो यह है कि खाऊंगा न खाने दूंगा वाला मोदी मंत्र जपने वाले हों या हाथ करेगा इंसाफ की बात करने वाले नेता हों दोनों दलों के स्थानीय नेता धावड़े का गोंद चबाने में मशगूल हैं। 

 

शहर की सरकार से लेकर प्रदेश और केंद्र तक ट्रिपल इंजन वाली चमत्कारी सरकार शहर के विकास के लिए प्रतिबद्ध है तो क्या इस महाघोटाले से सिर्फ इसलिए आंख मूंद ली जानी चाहिए कि भले ही मिल बांट कर खा रहे हैं लेकिन शहर का विकास भी तो कर रहे हैं।दिल्ली के शराब घोटाले, बिहार के चारा घोटाले से विचलित होने वाली केंद्र सरकार को क्या स्वविवेक से इस घोटाले की सीबीआई जांच का निर्णय नहीं लेना चाहिए। नगर निगम में इन ठेकेदारों ने जो हुनर दिखाया है उसे तो खुद महापौर भी स्वीकार चुके हैं।वो यह भी जानते हैं कि इतने बड़े घोटाले को स्वीकार कर के खुद वो भी विरोधियों के निशाने पर आ सकते हैं इसके बाद भी उनकी सराहना करना चाहिए।ऑफिस से जब महाघोटाले से जुड़ी फाइलें गायब होने लगे और किसी संभावित आगजनी की काली छाया मंडराने लगे तो कानून के जानकार महापौर को खुद ही पीएम को इस महाघोटाले की सीबीआई जांच के लिए पत्र लिखने का दुस्साहस भी करना चाहिए? कभी इसी नगर निगम के महापौर रहे कैलाश विजयवर्गीय पर पेंशन घोटाले का कीचड़ उछला था।वो पेंशन घोटाला हुआ था या नहीं, इसकी सत्यकथा तो न्यायालय में मामला ले जाने वाले कांग्रेस नेता केके मिश्रा सुना सकते हैं। 

 

 

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