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सान्दीपनि आश्रम


       पौराणिक परम्परा के अनुसार कुलगुरू सान्दीपनि के आश्रम में योगेश्वर कुष्ण एवम् उनके मित्र सुदामा ने शिक्षा प्राप्त की थी । महाभारत, श्रीमद्भागवत, ब्रह्मपुराण, अग्निपुराण तथा ब्रह्मवैवर्तपुराण में सान्दीपनि आश्रम का उल्लेख मिलता हैं। इस क्षेत्र में पुरातात्विक प्रमाण के रूप में तीन हजार वर्ष पुराने चित्रित धूसर पात्र मिले हैं, जिनका सम्बन्ध महाभारत काल से माना जा सकता हैं। ये पात्र हस्तिनापुर , इन्द्रपस्थ, मथुरा, अहिच्छत्रा और कौशाम्बी से प्राप्त अवशेषों से मिलते-जुलते हैं।
                 आश्रम का प्राचीन जलस्त्रोत गोमती कुण्ड हैं, जिसका पुराणों में भी उल्लेख मिलता हैं। कुण्ड के पास खड़े नन्दी की प्रतिमा दर्शनीय हैं, जो शुंगकालीन है । निकट  का क्षेत्र अंकपात कहलाता हैं। जनश्रुति  के आधार पर कृष्ण अपने अंक लेखन की पट्टिका यहाँ साफ करते थे। सोलहवीं शताब्दी के आरम्भ में इस आश्रम के पास श्री वल्लभाचार्य ने धार्मिक प्रवचन किया था। उस स्थान पर आचार्य द्वारा लगाया हुआ पीपल का वृक्ष हैं जिसका किसी नरोत्तम शर्मा को दिया गया प्रशस्ति पत्र हैं। वल्लभ सम्प्रदाय के अनुयायी  श्री वल्लभाचार्य की चैरासी बैठकों में से इस स्थान को महाप्रभुजी की तिहत्तरवी बैठक मानते हैं।

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