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उज्जैन | रूपांतरण दशहरा मैदान पर आयोजित गजलांजलि साहित्यिक संस्था ने काव्य संगोष्ठी आयोजित की।


उज्जैन | रूपांतरण दशहरा मैदान पर आयोजित गजलांजलि साहित्यिक संस्था ने काव्य संगोष्ठी आयोजित की। संस्था के पूर्व अध्यक्ष डॉ. श्रीकृष्ण जोशी को संस्कार भारती एवं विचार क्रांति मंच ने स्व. डॉ. श्रीधर वाकणकर के 105वें जन्मोत्सव में चित्रकार सम्मान प्रदान किया है। संगोष्ठी में डॉ. विजय सुखवानी ने गजल िजंदगी की रफ्तार कम कर दो, थोड़ा सा कारोबार कम कर दो... सुनाई। काव्य संगोष्ठी की शुरुआत करते हुए प्रफुल्ल शुक्ला सरकार ने रचना पिता घुमाते थे मेला, बचपन में मुझको, यादों में अब तक वह जाना अच्छा लगता है.., आजकल रिश्ते किस तरह बनाकर रखे जाते हैं... इस पर राजेंद्र शर्मा ने रचना पढ़ी।

आजकल रिश्ते निभ रहे ऐसे जैसे दीवार की दरार ढांकने वाल पेपर लगाते हैं..., अपनी गजलों से सबका दिल जीत लेने वाले डॉ. अखिलेश चौरे ने फिर एक कामयाब गजल पढ़ी- महकती एक फुलवारी सभी के दिल में होती है, हुनर कोई को फनकारी सभी के दिल में होती है..., अवधेश वर्मा ने मनुष्य जूझता है जीवन में किसी न किसी समस्या से... रचना पढ़ी। ईश्वर मैं तुम्हारा भक्त हूं भिखारी नहीं... आस्था और मजबूरी को अलग करती रचना दिलीप जैन ने पढ़ी। सत्यनारायण सत्येंद्र ने कवियों के आते जाते दौर पर कविता हम उस दौर के कवि हैं, जब सौंदर्य, प्रकृति, प्रेम, सौहार्द हुआ करते थे... सुनाई। एक गजल विजयसिंह गेहलोत ने भी पढ़ी मुस्कुराने की वजह ढूंढ लेते हैं, गम छुपाने की वजह ढूंढ लेते हैं. आदि ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। आभार अवधेश वर्मा ने माना।

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