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प्रदेश की 21 नदियाँ गंभीर रूप से प्रदूषित , नदियों के प्रदूषण में म.प्र. तीसरे नम्बर पर


 

संदीप कुलश्रेष्ठ 
                   देश में प्रदूषित नदियों कि संख्या के हिसाब से महाराष्ट्र और असम के बाद मप्र तीसरे नम्बर पर है। यही नहीं म.प्र. की नर्मदा और शिप्रा के साथ ही प्रदेश की प्रमुख 21 नदियाँ गंभीर रूप से प्रदूषित है। पर्यावरण विभाग के अनुसार म.प्र. कि सभी 58 नदियाँ प्रदूषित है। इनका पानी कार्बनिक रसायन से नीचे पाया गया है। 
तीन साल पहले केंद्रीय प्रदूषण नियत्रंण बोर्ड भेजी थी रिपोर्ट-
                    म.प्र. कि नदियों के प्रदूषित होने की रिपोर्ट केंन्द्रीय प्रदूषण नियत्रंण बोर्ड ने मप्र प्रदूषण नियत्रंण बोर्ड को तीन साल पहले भेज दी थी। लेकिन प्रदेश का प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अभी तक एक्शन प्लान ही तैयार नहीं कर सका है। बोर्ड के वैज्ञानिक डॉ. आर पी मिश्रा ने बताया कि उन्हें नदियों के  सरक्षण की दिशा में कोई प्लान नहीं मिला है। वही मप्र प्रदूषण बोर्ड के अफसरों का कहना है कि एक्शन प्लान पर ही काम चल रहा है। ये हाल है मप्र पदूषण नियंत्रण बोर्ड के !
लोक सभा में भी किया स्वीकार-
                  केंन्दीय पर्यावरण, वन एंव जलवायु परिवर्तन मत्रांलय ने केंन्द्रीय प्रदूषण नियत्रंण बोर्ड के 2015 की रिपोर्ट के हवाले से लोक सभा में स्वीकार किया है कि नदियों में प्रदूषण बढ़ रहा है। इस सूची में प्रदेश की सबसे बडी नर्मदा नदी भी शामिल है, जिसके सुद्धिकरण के लिये कई सालों से  बडे अभियान चलाये जा रहे हैं। उज्जैन की क्षिप्रा नदी भी गंभीर रूप से प्रदूषित है। राज्य सरकार ने इसे नर्मदा से भी जोड दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक प्रदूषण की खास वजह नदियों में सीधे  गंदगी पहुचना है। पदूषणकारी तत्वों को रोकने के लिये मलजल एकत्रण और परिवहन के लिये केंन्द्रीय मदद राज्यों को दी जा रही है। किंतु इसके सकारात्मक परिणाम अभी तक दिखाई नहीं दे रहे हैं। 
प्रदेश की सभी 58 नदियाँ प्रदूषित- 
                 प्रसिद्ध पर्यावरणविद् श्री सुभाष सी पांडे ने प्रदेश की नदियों के बारे मे बताया कि मप्र में 21 नहीं, बल्कि सभी 58 नदियाँ प्रदूषित है। इसमें नर्मदा, शिप्रा, बेतवा जैसी बडी नदियाँ भी शामिल है। कई नदियों में तो कपडे तक नहीं धो सकते। अफसोसजनक बात यह है कि जीवनदायनी नदियों को लेकर सरकारी तंत्र पूरी तरह लापरवाह है। 
स्वयंसेवी सस्थाओं की मदद से करें प्रदूषण दूर -
                       नदियों का प्रदूषण दूर करना केवल केंन्द्र या राज्य सरकार की जिम्मेंदारी नही है । यह जिम्मेदारी हम सब की है। जिस शहर , जिस कस्बे या जिस गांव से नदी गुजरती है, वहाँ के वासिंदे हरएक व्यक्ति का कर्तव्य है  कि वे  अपने यहाँ से गुजरने वाली नदी की स्वच्छता का ध्यान रखें। जनभागीदारी इस काम में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है । सन 2004 में उज्जैन में आयोजित होने वाले सिंहस्थ के करीब दो साल पहले ही पतीत पावन शिप्रा नदी को शुद्ध रखने के लिये व्यापक स्तर पर जनभागीदारी अभियान  चला था । मालवा के प्रसिद्ध संत पं. कमलकिशोर नागर के आहृन पर हजारों ग्रामीणजन शिप्रा के शुद्धीकरण अभियान में उज्जैन आये थे । शासन और प्रशासन ने  भी हर संभव मदद की थी। उस दौरान रामघाट, दत्त अखाडा घाट और आसपास का क्षेत्र स्वच्छ हो गया था।
                          पूर्व में उज्जैन की तत्कालीन संभागायुक्त सुश्री स्वर्णमाला रावला के आहृन पर त्रिवेणी से सिद्धवट तक शिप्रा सुद्धीकरण अभियान भी चला। उस दौरान शिप्रा के घाटों का कायाकल्प हो गया था। शिप्रा का जल भी स्वच्छ और प्रदूषणरहित हो गया था। किंतु बाद में वही ढाल के तीन पात । शिप्रा नदी दिनों दिन प्रदूषित होती चली गई।  प्रदेश की सबसे बडी नर्मदा नदी को प्रदूषणरहित करने के लिये भी अनेक योजनाए बनाई गई। विदिशा में बेतवा नदी के शुद्धीकरण के लिये भी अभियान चलाया गया। जब तक जनभागीदारी नहीं हो पायेगी, तब तक नदियों का शुद्धीकरण संम्भव नहीं है । इसके लिये लोगों का आगे आना जरूरी है । विभिन्न स्वंयसेवी , धार्मिक एंव समाजसेवी सस्थाओं को अपने- अपने यहाँ की नदियां के शूद्धीकरण और प्रदूषणरहित करने के लिये आगे आना पडेगा। इसके लिये शासन और प्रशासन को चाहिए की वे जनभागीदारी अभियान सतत संचालित करते रहें।
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