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सेना के मेक इन इंडिया के लिए कोई बजट प्रावधान नहीं और विश्व में हथियार खरीदने की सूची में सबसे ऊपर आया भारत


डॉ. चंदर सोनाने

इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2013-17 के दौरान दुनिया भर में आयात किए गए हथियारों में भारत की हिस्सेदारी सर्वाधिक 12 प्रतिशत है। अमेरिकी कॉन्ग्रेशनल रिसर्च सर्विस के मुताबिक सन 2008 से 2015 के बीच भारत ने रक्षा खरीदी पर 2 लाख 27 हजार करोड़ रूपये खर्च किए है। सन 2004 में सत्ता में आने के बाद भाजपा की सरकार ने सेना में मेक इन इंडिया का नारा बुलंब किया था। लेकिन धरातल पर कुछ भी नहीं किया। आज भी हथियारों के मामले में भारत विदेशों पर ही निर्भर है। हथियार खरीदी में विश्व में जहाँ भारत पहले नंबर पर है, वहीं मजेदार बात यह है कि मेक इन इंडिया के लिए उसके पास कोई राशि नहीं है। 
                भारत ने वर्ष 2013-17 के बीच में सबसे ज्यादा हथियार रूस से खरीदे हैं । कुल खरीदे गए हथियारों में रूस की हिस्सेदारी 62 प्रतिशत है। अमेरिका से 15 प्रतिशत और इजराइल से 11 प्रतिशत  हथियार भारत ने खरीदे हैं। रूस और इजराइल से हथियार लेने में भारत पहले नंबर पर है। भारत ने एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए अमेरिका के साथ अपने कुटनीतिक रिश्ते मजबूत कर लिए है। इस दिशा में भारत ने अमेरिका से 2013-17 के दौरान 97,000 करोड़ रूपये से ज्यादा के हथियार खरीदे। यह साल 2008 -12 के मुकाबले 557 प्रतिशत ज्यादा है। 
               वहीं दूसरी ओर चीन ने धीरे धीरे हथियारो का आयात न केवल कम किया, बल्कि वह आत्मनिर्भर बनने के साथ ही हथियारों का निर्यात भी करने लगा है। आज चीन हथियारों के निर्यात के क्षेत्र में अपनी धाक जमाते हुए दुनिया का पाँचवा सबसे बड़ा हथियार विक्रेता देश बन गया है। हालांकि इस मामले में अमेरिका पहले नंबर पर है। इसके बाद रूस, फ्रांस ओर जर्मनी है। भारत अभी भी अपनी रक्षा जरूरतों को पूरा करने लिए 65 प्रतिशत हथियार बाहर से खरीदता है।  
               हाल ही में सेना के उप सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल श्री शरद चंद्र ने स्थायी संसदीय समिति के समक्ष बेबाक अपनी बात रखी। उन्होंने बताया कि वर्तमान में सेना के पास 68 प्रतिशत हथियार संग्रहालय में रखने लायक है। आधुनिकीरण के लिए सेना के पास पर्याप्त बजट नहीं है। सेना ने अपने आधुनिकीरण योजना के तहत मेक इन इंडिया के लिए 25 परियोजनाओं की पहचान की थी । लेकिन इनमें से कई परियोजनाओं को खत्म करना पढ़ सकता है । क्योंकि इसके लिए पर्याप्त बजट ही नहीं है। उन्हांने यह भी कहा कि सेना के साजो सामान में 24 प्रतिशत सामान इस्तेमाल करने लायक है। यही नहीं सेना के पास 8 प्रतिशत सामान ऐसा है, जो पूरी तरह से आधुनिक है। उल्लेखनीय है कि सेना के पास मौजूदा साजो सामान औसत एक तिहाई संग्रालय श्रेणी से ज्यादा का नहीं होना चाहिए।
                 वित्त मंत्री श्री अरूण जेटली ने वर्ष 2018-19़ के लिए सेना के आधुनिकीकरण के लिए मात्र 21 ,338 करोड़ रूपये बजट में दिए है। जबकि सेना ने 37,000 करोड़ रूपये मांगे थे। इस प्रकार जो राशि का प्रावधान किया गया है वह अपर्याप्त है। सेना के करीब 125 चालू योजनाओं के लिए 29000 करोड़ रूपयों की भी जरूरत है। 
                 विदेशी हथियार खरीदने में बहुमूल्य विदेशी मुद्रा लगती है। इसलिए मोदी सरकार ने 2014 में सरकार में आने पर जोर शोर से यह ऐलान किया था कि वे अब हथियार के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनेंगे। इसके लिए उन्होंने सेना में भी मेक इन इंडिया लागू करते हुए भारत में ही हथियार बनाने का एलान भी किया था। किंतु इस दिशा में ठोस प्रयास अभी तक आरंभ नहीं किए गए हैं। यह दुखद है। भारत में प्रतिभाओं की कमी नहीं है । यह सब जानते है । बस जरूरत है इस दिशा में ठोस पहल करने की। आधुनिक हथियार बनाने की टेक्नोलॉजी में लगातार शोध करके भारत भी चीन के समान प्रगति कर हथियार बनाने में आत्मनिर्भर बन सकता है। जरूरत इस बार की है कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण भारत को आधुनिक हथियार बनाने के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लिए ठोस नीति बनाकर ठोस कारवाई करें। 
                  
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