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सुचिता और सिद्धांत वाली भारतीय जनता पार्टी अब कहाँ है ?


डॉ. चंदर सोनाने

हाल ही में मेघालय में महज दो सीटों वाली बीजेपी 21 सीटों वाली कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर सत्ता पर काबिज हो गई है। गोवा और मणिपुर में भी कुछ ऐसा ही हुआ था। सबसे बड़ी पार्टी के रूप में जनता ने जनादेश भाजपा को नहीं दिया था, किंतु वहाँ भी भाजपा ने जोडतोड कर सत्ता पर कब्जा कर लिया। सुचिता और सिद्धांत का दम भरने वाले भारतीय जनता पार्टी ने सत्ता प्राप्ति के लिए सुचिता और सिद्धांतों को तिलांजलि दे दी। एक तरह से भाजपा का कांग्रेसीकरण हो गया है। श्रीमती इंदिरा गांधी ने भी सत्ता प्राप्ति के लिए साम दाम दंड भेद की नीति अपनाई थी। और राज्यपाल के माध्यम से अनेक राज्यों पर इसी तरह से कब्जा किया था। वही तरीका अब बीजेपी अपना रही है। सत्ता प्राप्ति के लिए वह अब कुछ भी करने के लिए तैयार है। उसने भी कांग्रेस का ही रास्ता अपना लिया है। साम दाम दंड भेद की नीति को मन से भाजपा ने स्वीकार कर लिया है।
                त्रिपुरा में हाल ही के चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में भाजपा उभर कर आई है । किंतु उसने वहाँ पर सबसे अधिक सीट कैसे प्राप्त की, इसका खुलासा त्रिपुरा राज्य के प्रभारी भाजपा के श्री सुनील देवधर ने किया है। आज तक न्यूज चैनल से इंटरव्यू में उन्होंने यह स्वीकार किया है कि राज्य में भाजपा के कार्यकर्ताओं में 90 प्रतिशत कार्यकर्ता कांग्रेस और टीएमसी के हैं। यहाँ यह चमत्कार श्री सुनील देवधर ने कर दिखाया है। उन्होंने कांग्रेस और टीएमसी के नाराज कार्यकर्ताओं को अपने पक्ष में करने के लिए साम दाम दंड भेद की नीति अपनाई और त्रिपुरा में 25 साल से काबिज वामपंथी पार्टी को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया।
                भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में श्री अटल बिहारी वाजपेयी और श्री लालकृष्ण अड़वानी ने सुचिता , नैतिकता और सिद्धांत को अपने सामने रखकर राजनीति की । उन्होंने भारतीय राजनीति में सबसे अलग पार्टी होने का खिताब भी प्राप्त किया और सत्ता प्राप्ति के लिए कभी उन्होंने कांग्रेस की नीति और साम दाम दंड की नीति नहीं अपनाई। श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पहली बार मात्र 13 दिन प्रधानमंत्री रहते हुए अल्पमत में आने के कारण जोड़ तोड़ की राजनीति अपनाने की बजाय प्रधानमंत्री के पद से त्यागपत्र देकर अपनी एक अलग मिसाल कायम की थी। वह आज इतिहास में दर्ज है।
                   किंतु, भारतीय जनता पार्टी अब ना तो श्री अटल बिहारी वाजपेयी के जमाने की पार्टी रही है और ना ही श्री लाल कृष्ण आडवानी के सिद्धांतों वाली पार्टी बची है। यह पार्टी अब श्री नरेंद्र मोदी और श्री अमित शाह की पार्टी है। सत्ता प्राप्ति के लिए ये दोनों कुछ भी कर सकते हैं। यह उन्होंने मेघालय, मणिपुर और गोवा में सिद्ध कर दिखाया है। दोनों बड़े शान से यह कहते है कि आज भारतीय जनता पार्टी का देश के सबसे अधिक राज्यो में शासन है। इतने राज्यों में पहले इंदिरा जी के समय में भी नहीं था। यह वे अपनी उपलब्धि मानते हैं। और इस बात के लिए गर्व भी करते हैं। यह है भाजपा की नई सुचिता और नए सिद्धांत !
                    मध्यप्रदेश के संदर्भ में बात करें तो भारतीय जनता पार्टी के सत्ता प्राप्ति के लिए किए गए प्रयासों के लिए दो उदाहरण ही काफी है। मध्यप्रदेश के होशंगाबाद के सांसद कांग्रेस के श्री उदय प्रताप सिंह थे। पिछले लोकसभा चुनाव के पहले ही भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें भाजपा का सदस्य बनाकर लोकसभा चुनाव का उम्मीदवार घोषित कर दिया था। और उस समय वहाँ चले चुनाव प्रचार में एक रोचक और मजेदार मुँहावरा चल पड़ा था कि “ अपने साथीं श्री उदय प्रताप सिंह के हाथ मजबूत करते हुए भाजपा को विजयी बनाईए। ” और इस तरह कांग्रेस के सांसद को चुनाव के एन वक्त पर भाजपा का उम्मीदवार बनाते हुए होशंगाबाद से भाजपा ने अपनी झोली में सीट डाल ली थी। इसी तरह का दूसरा उदाहरण भिंड का है। यहाँ से कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में डॉ. भागीरथ प्रसाद सांसद का ही चुनाव एक बार हार गए थे। दूसरे चुनाव में फिर से कांग्रेस ने डॉ. भागीरथ प्रसाद को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया था। किंतु एन वक्त पर नामांकर भरते समय डॉ. भागीरथ प्रसाद को भाजपा ने अपने पक्ष में करते हुए भाजपा के उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन भरवा दिया था। आज डॉ. भागीरथ प्रसाद भी भिंड से भाजपा के सांसद है।
                      अपनी रीति, नीति और सिद्धांत से भारतीय राजनीति में पृथक पहचान रखने वाली भाजपा अब सब के लिए सर्वस्पर्शी हो गयी है। भाजपा सबके लिए सर्वग्राही हो गई है। और यह चमत्कार कर दिखाया है श्री नरेंद्र मोदी और श्री अमित शाह ने। उन्हें उनकी इस उपलब्धि पर प्रणाम!

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