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नौकरीपेशा व्यक्ति कारोबारियों की तुलना में तीन गुना अधिक देता है टैक्स


डॉ. चंदर सोनाने

केन्द्र के वित्त सचिव श्री हसमुख अढ़िया ने यह पहली बार खुलासा किया है कि हमारे देश में नौकरीपेशा व्यक्ति कारोबारियों की तुलना में तीन गुना ज्यादा टैक्स चुकाता है । वित्त सचिव ने यह जानकारी हाल ही में सीआईआई के एक कार्यक्रम में दी है।
                 केन्द्रीय वित्त सचिव ने इस संबंध में बताया है कि वर्ष 2016-17 में 1.89 करोड़ नौकरीपेशा लोगों ने 1.44 लाख करोड़ रूपये का टैक्स सरकारी खजाने में जमा किया है। यानी प्रति व्यक्ति औसतन 76,306 रूपये टैक्स के रूप में जमा किए गए हैं। नौकरीपेशा व्यक्ति की तुलना में   1.88 करोड़ कारोबारियों ने उक्त अवधि में ही 48,000 करोड़ रूपये का ही टैक्स दिया है। अर्थात कारोबारियों द्वारा प्रति व्यक्ति औसत 25,753 रूपये ही टैक्स के रूप में दिए गए।
                 केन्द्रीय वित्त सचिव ने एक और महत्वपूर्ण खुलासा किया है। उन्होंने बताया कि देश में करीब 7 लाख कंपनियाँ आयकर रिटर्न फाइल करती है । लेकिन इनमें से आधी कंपनियाँ जीरो या नेगेटिव इनकम दिखाती है। ये आश्चर्यजनक होते हुए दुखद भी है। इन कारोबारियों को टैक्स के दायरे में लाने के लिए सरकार द्वारा विशेष पहल किए जाने की आवश्यकता है।
                 अब जबकि केन्द्र शासन के ही वित्त सचिव श्री हसमुख अढिया ने नौकरीपेशा व्यक्तियों और कारोबारियों द्वारा दिए जा रहे टैक्स का सनसनीखेज खुलासा किया है , तब केन्द्र शासन को चाहिए कि वे ईमानदारी से टैक्स चुकाने वाले सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के उपर और टैक्स का बोझ लादने से बचे।
                 हाल ही में केन्द्रीय वित्त मंत्री श्री अरूण जेटली ने आगामी वित्तीय वर्ष 2018-19 का लोकसभा में बजट पेश करते हुए नौकरीपेशा व्यक्तियों को कोई विशेष छूट नहीं दी है। यहाँ मजेदार बात यह है कि ढ़ाई लाख रूपये वार्षिक आय वाले व्यक्तियों को ही टैक्स से छूट दी गई है। अर्थात करीब 20 हजार रूपये प्रतिमाह कमाने वाले व्यक्तियों को ही टैक्स से छूट मिल रही है। इससे अधिक कमाने वाले व्यक्तियों पर केंद्र शासन ने टैक्स लाद दिए है।
                 एक सामान्य व्यक्ति, जिसके परिवार में औसत पाँच सदस्य है। उस परिवार का मासिक खर्च जीवन निर्वाह के लिए कितना होता है ? इसका आंकलन करने की सख्त आवश्यकता है। केन्द्र शासन और वित्त विशेषज्ञों को चाहिए कि वे इस संबंध में मोटा अनुमान लगाएँ । वर्तमान में सामान्यतः पाँच व्यक्तियों वाले परिवार को अपने मूलभूत खर्चे के लिए मासिक 30 हजार रूपये की जरूरत पड़ती ही है। अर्थात वार्षिक 3 लाख 60 हजार रूपये उसको अपने परिवार के जीवन निर्वाह के लिए चाहिए ही। यदि उसका बच्चा उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहा है या तकनीकी अथवा मेडीकल लाइन में है तो उसके पास बच्चों की फीस चुकाने के लिए भी पैसे नहीं है। उसे बैंक से शिक्षा ऋण लेने के लिए बाध्य होना ही पड़ेगा। अथवा साहूकारों से मनमानी ब्याज दर पर ऋण लेने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।
                आज की महंगाई के जमाने में एक सामान्य परिवार को अपने परिवार के जीवन निर्वाह और बच्चों की समुचित शिक्षा व्यवस्था के लिए औसतन 50 हजार रूपये मासिक खर्च जरूरी है। इसलिए केन्द्र शासन को चाहिए कि वार्षिक छह लाख रूपये तक की आय वाले व्यक्ति को टैक्स के दायरे से दूर ही रखे। वर्तमान में यह संभव नहीं हो तो शुरूआत के तौर पर यह तो किया ही जा सकता है कि 30 हजार रूपये मासिक अर्थात 3 लाख 60 हजार रूपये वार्षिक जिसकी आय हो उसे टैक्स के दायरे से दूर रखा जाए। अर्थात 3 लाख 60 हजार वार्षिक आय वाले व्यक्ति को टैक्स मुक्त रखा जाए। उसके बाद 6 लाख रूपये वार्षिक आय होने तक अधिकतम 5 प्रतिशत की दर से इनकम टैक्स लिया जाए, तभी नौकरीपेशा लोगों के साथ न्याय हो सकेगा। वर्तमान में सातवाँ वेतनमान मिलने के बाद एक सामान्य तृतीय श्रेणी कर्मचारी का वेतन लगभग 30 हजार रूपये का ही बन रहा है। इस प्रकार तृतीय श्रेणी कर्मचारी और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी टैक्स के दायरे में आने से बच जाएंगे , जो अभी टैक्स के दायरे में आ रहे हैं।
                 प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की भाजपा सरकार जो सामान्यतः ऐसा माना जाता था कि वह मध्यम वर्गो की हितेषी वाली पार्टी है, उसने भी इस बजट के माध्यम से लोगों का भ्रम तोड़़ दिया है।  अब किससे न्याय की पुकार की जाए। भगवान ही मालिक है वेतनभोगी कर्मचारियों का ।
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