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मानव जीवन है मुक्ति की साधना के लिए


इंदौर। परीक्षा लेने और देने के लिए दोनों ही पक्षों में पात्रता होना जरूरी है वरना परीक्षार्थी और परीक्षक का कोई औचित्य नहीं रहेगा। इसी प्रकार साधु जीवन का निर्वहन भी योग्य पात्र ही कर सकता है। दीक्षा देने वाले गुरु को भी योग्य होना अति आवश्यक है। जब तक आपकी श्रद्धा मजबूत है तब तक आपके जीवन में आनंद ही आनंद रहेगा। श्रद्धा टूटते ही आपके जीवन से आनंद चला जाएगा।

यह बात आचार्य विजय कीर्तियश सूरीश्वर ने शुक्रवार को नृसिंह वाटिका एरोड्रम रोड पर कही। वे उत्तराध्ययन श्रवणोत्सव के तीसरे दिन संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि मानव जीवन मुक्ति की साधना के लिए है न कि काम भोग में बिताने के लिए। महापुरुषों ने परमात्मा की इसी वाणी को ध्यान में रखते हुए संसार त्यागकर मोक्ष मार्ग अपनाकर आत्म कल्याण किया। जो वैराग्य धारण कर परमात्मा की राह पर चले वे परम लक्ष्य को पाने में सफल हुए। परमात्मा ने कहा है कि जो व्यक्ति अंदर से मजबूत होता है उसके मन में बाहरी जगत की चिंता का कोई मतलब नहीं है।

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