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सिर्फ़ अपनी पीठ न थपथपाये सरकार



-फ़िरदौस ख़ान
देश में आज भी छोटे-बड़े क़स्बों और गांव-देहात में पारंपरिक चूल्हे पर खाना पकाया जाता है। इनमें लकड़ियां और उपले जलाए जाते हैं। इसके अलावा अंगीठी का भी इस्तेमाल किया जाता है। अंगीठी में लकड़ी और पत्थर के कोयले जलाए जाते हैं। लकड़ी के बुरादे, काठी और तेंदुए के पत्तों से भी अंगीठी दहकाई जाती है। ऐसी अंगीठियां अमूमन उन इलाक़ों में देखने को मिलती हैं, जहां कपास उगाई जाती है और बीड़ी बनाने का काम होता है। आदिवासी इलाक़ों और गांव-देहात में पुरुष, महिलाएं और बच्चे तक जंगल से जलावन इकट्ठा करके लाते हैं।
दुनिया की तकरीबन आधी आबादी आज भी घरों के भीतर पारंपरिक चूल्हों पर खाना पकाती है। भारत में भी तक़रीबन 50 करोड़ लोग इन्हीं चूल्हों का इस्तेमाल करते हैं। चूल्हे के धुएं से खाना पकाने वाली महिलाएं आंखों में जलन, हृदय और फेफड़ों की बीमारियों की शिकार हो जाती हैं। बीमारी गंभीर होने पर उनकी मौत तक हो जाती है। ऐसा नहीं है कि महिलाएं ही चूल्हे के धुएं से प्रभावित हैं। घर के पुरुष और बच्चे भी घरेलू वायु प्रदूषण की चपेट में आ जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ घरेलू वायु प्रदूषण की वजह से भारत में हर साल तक़रीबन 15 लाख लोगों की मौत होती हैं।
 
भारत में महिलाओं को पारंपरिक चूल्हे के धुएं से होने वाली परेशानी से बचाने के लिए केंद्र सरकार ने रसोई गैस के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया। लेकिन रसोई गैस कनेक्शन महंगा होने की वजह से ग़रीब लोग चाहकर भी इसे इस्तेमाल में नहीं ला पाए। इसके बाद ग़रीब परिवारों को मुफ़्त  रसोई गैस कनेक्शन देने की योजना आई। ग़ौरतलब है कि प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना 1 मई 2016 को उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले में शुरू की गई थी। इसका मकसद तीन साल के भीतर ग़रीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों की पांच करोड़ महिलाओं को मुफ़्त रसोई गैस के कनेक्‍शन मुहैया कराना है। इसके लिए सरकार 1,600 रुपये प्रति गैस कनेक्शन की दर से अनुदान दे रही है। सरकार ने इसके लिए 8,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया है। इस योजना के तहत परिवार की महिला मुखिया के नाम से गैस कनेक्शन दिया जाता है। पिछले शनिवार को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत पश्चिम बंगाल में अपने गृह ज़िले जांगीपुर में आयोजित कार्यक्रम में ग़रीबी रेखा से नीचे रहने वाली महिला गौरी सरकार को मुफ़्त रसोई गैस कनेक्शन प्रदान किया। इसके साथ ही ग़रीब परिवार की महिलाओं को मुफ़्त रसोई गैस कनेक्शन देने की इस योजना के लाभार्थियों की तादाद ढाई करोड़ तक पहुंच गई।
इस योजना के प्रचार-प्रसार पर सरकार पानी की तरह पैसा बहा रही है। सरकार ज़्यादा से ज़्यादा कनेक्शन बांटकर अपनी पीठ थपथपाने को बेचैन दिख रही है। इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है कि जिन महिलाओं को मुफ़्त गैस कनेक्शन दिए गए हैं, क्या उन्होंने दोबारा सिलेंडर ख़रीदा भी है या नहीं ? 
 
क़ाबिले-ग़ौर यह भी है कि जिन लोगों के पास रसोई गैस कनेक्शन है, उन्हें भी अकसर शासाअन-प्रशासन से अनेक शिकायतें रहती हैं। गैस उपभोक्ताओं को सिलेंडर बुक कराने के बाद कई-कई दिन तक सिलेंडर नहीं मिलता। गैस एजेंसी के बाहर उपभोक्ताओं की लंबी-लंबी क़तारें देखा जा सकती हैं। लोग अपने काम-धंधे छोड़कर झुलसती गरमी में घंटों क़तार में लगे रहते हैं। फिर भी बहुत लोगों को सिलेंडर नहीं मिलता। उनसे कह दिया जाता है कि सिलेंडर ख़त्म हो गए, पीछे से गैस नहीं आ रही है, गैस की क़िल्लत चल रही है, वग़ैरह-वग़ैरह। लेकिन कालाबाज़ारी में कभी गैस की क़िल्लत नहीं होती, ज़्यादा दाम चुकाओ, जितने चाहे सिलेंडर ख़रीदो। गैस एजेंसी के गोदामों से काला बाज़ार के माफ़िया तक पहुंच जाती है और उपभोक्ता गैस के लिए परेशान होते रहते हैं।
 
एक तरफ़ उपभोक्ता रसोई गैस को तरस रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ़ घरेलू रसोई गैस व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में ख़ूब इस्तेमाल हो रही है। नियम के मुताबिक़ होटल, रेस्त्रां या व्यवसायिक प्रतिष्ठान के घरेलू रसोई गैस का इस्तेमाल करने पर संबंधित प्रतिष्ठान के ख़िलाफ़ आवश्यक वस्तु अधिनियम के अलावा अन्य सुसंगत धाराओं के तहत कार्रवाई करने का प्रावधान है। इसके अलावा छोटे सिलेंडरों का बाज़ार भी बड़ा है। बड़े सिलेंडरों से छोटे सिलेंडरों में गैस भरकर मनचाहे दामों पर गैस बेची जाती है। जिनके पास बड़े सिलेंडर नहीं हैं, वे लोग पांच किलो वाले सिलेंडर में गैस भरवाकर ही अपना चूल्हा जला लेते हैं। रौशनी के लिए भी छोटे गैस सिलेंडर इस्तेमाल किए जाते हैं। गैस भरने का यह काम ख़तरनाक है। अकसर इसकी वजह से आगज़नी जैसे हादसे भी हो जाते हैं, लेकिन इससे न तो गैस कारोबारी सबक़ लेते हैं और न ही शासन-प्रशासन इस बारे में कोई सख़्त क़दम उठाता है। ये काम प्रशासन की नाक के नीचे सरेआम भी किया जाता है और चोरी-छुपे भी किया जाता है।
 
इतना ही नहीं तेल कंपनियों के तमाम दावों के बावजूद सिलेंडर में गैस में कम होने के मामले भी थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। हालत यह है कि गैस सिलेंडरों में एक से दो किलो तक गैस कम निकल रही है। अमूमन भरे हुए रसोई गैस सिलेंडर का वज़न 30 किलो होता है इसमें 15।8 किलो वज़न सिलेंडर का और 14।2 किलो वज़न गैस का होता है। यह जानकारी सिलेंडर पर लिखी होती है। सिलेंडर में गैस निकालकर वज़न पूरा करने के लिए पानी डाले जाने के मामले भी सामने आते रहते हैं। सिलेंडर में पानी डालने से वह ज़ंग पकड़ लेता है, जिससे कभी भी होई भी हादसा हो सकता है। शिकायत करने पर गैस एजेंसी संचालक अपनी ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की कोशिश करते हैं। अकसर जवाब मिलता है कि एजेंसी से सही सिलेंडर भेजा गया है। अगर ऐसा भी है, तो घर तक सही सिलेंडर पहुंचाने की ज़िम्मेदारी गैस एजेंसी की है। दरअसल, देश में शासन-प्रशासन की लापरवाही और उपभोक्ता में जागरुकता की कमी की वजह से तेल कंपनियां और गैस एजेंसी संचालक अपनी मनमानी करते हैं। और इसका ख़ामियाज़ा उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ता है।
 
सरकार योजनाएं शुरू तो कर देती है, लेकिन उसके सही कार्यान्वयन पर ध्यान नहीं देती। इसीलिए न जाने कितनी योजनाएं सरकारी क़ाग़ज़ों तक ही सिमट कर रह जाती हैं। अगर सरकार ईमानदारी से चाहती है कि महिलाएं रसोई गैस का इस्तेमाल करें, तो उसे इस योजना के हर पहलू पर ग़ौर करना होगा। सिर्फ़ सिलेंडर बांटने से ही महिलाओं की रसोई बदलने वाली नहीं है। इस बात का भी ख़्याल रखना होगा कि महिलाएं गैस सिलेंडर का ख़ुद इस्तेमाल करें न कि कोई और। इसके लिए यह भी बेहद ज़रूरी है कि गैस के दाम इतने ज़्यादा न बढ़ा दिए जाएं कि वे लोगों की पहुंच से दूर हो जाएं।

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