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शिप्रा नदी में डूबने से एक वर्ष में ही 44 मौतें ! बचाव के उपाय करना बेहद जरूरी


 

 

संदीप कुलश्रेष्ठ
                सिंहस्थ के बाद से करीब एक वर्ष में ही शिप्रा नदी में डूबने से 44 व्यक्तियों की मौत हो गई । यह स्थानीय एवं जिला प्रशासन की व्यवस्था पर एक प्रश्नचिन्ह है। अभी तक बचाव के कोई उपाय नहीं करना प्रशासन की अकर्मण्यता को ही सिद्ध करता है। मानवीय दृष्टिकोण से तत्काल ही बचाव के उपाय करना बेहद जरूरी है। 
                  हाल ही में शिप्रा नदी में दो युवको के डूबने से मौत हो गई । लगातार हो रही मौतों से नागरिकों के मन में सहज ही यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि आखिर जिला प्रशासन कर क्या रहा है ? न तो नदी किनारे गहरे पानी होने की कोई सूचना है और न ही खतरे के कोई निशान। कोई भी श्रद्धालु नदी में स्नान करते समय डूबे नहीं, इसके लिए कोई खतरे के संकेत भी नहीं है। इस कारण श्रद्धालु जब स्नान करने नदी में उतरता है तो अचानक गहरे पानी में चले जाने से उसकी मौत हो जाती है। कहने को तो वहां होमगार्ड के जवान अथवा तैराक रहते है , किंतु उनकी सजग निगाह नहीं रहने से ही दिनों दिन वारदातों में वृद्धि होती जा रही है। 
                  शिप्रा नदी के लगभग समस्त घाटों पर इतनी काई जमी हुई है कि वहां पैर रखते ही फिसलने का डर हमेशा रहता है। अच्छे तैराक भी वहां उतरने के पहले सोच समझकर ही पैर रखते है। ऐसी स्थिति में जो तैरना नहीं जानता है , ऐसा श्रद्धालु जब नदी में नहाने के लिए उतरता है तो फिसलने और डूबने की पूरी संभावना रहती है। इसी कारण भी नदी में डूबने की वारदातें अधिक हो रही है। शिप्रा नदी के समस्त घाटों पर जमी कंजी की निरंतर सफाई करने की भी अत्यंत आवश्यकता है। 
                हरिद्वार में मां गंगा के दर्शन और स्नान के लिए शिप्रा नदी से अधिक श्रद्धालु जाते हैं। किंतु वहां पर डूबने से यदा कदा ही मौत होने की खबर देखने सुनने में आती है। जबकि हरिद्वार में गंगा नदी का बहाव अत्यंत ही तेज है । वहां डूबने की अधिक संभावना रहती है। किंतु शासन , प्रशासन ने वहां पर डूबने से बचने के लिए तमाम उपाय किए हुए हैं। घाटों पर लोहे की मोटी जंजीर लगाई गई है। इसके अंदर ही श्रद्धालु स्नान करते हैं। तेज बहाव होने पर श्रद्धालु जंजीर पकड़ कर मां गंगा में डूबकी लगाते है। वहां सुरक्षा के विभिन्न उपाय करने के कारण श्रद्धालुओं की डूबने से मौत कम से कम होती है। 
                हरिद्वार के ही समान शिप्रा नदी के विभिन्न घाटों पर भी व्यवस्था क्यों नहीं की जा सकती है ? यहां शिप्रा नदी में विभिन्न तीज त्यौहारों पर मालवांचल और दूर दूर से श्रद्धालू पतित पावन शिप्रा नदी में डूबकी लगाने के लिए आते है। इसलिए यहां सुरक्षा के माकूल इंतजाम बेहद जरूरी है। 
                स्थानीय प्रशासन और जिला प्रशासन दोनों मिलकर भी शिप्रा नदी में स्नान की सुरक्षा व्यवस्था में सफल सिद्ध नहीं हुआ हैं। इसलिए उज्जैन संभाग के संभागायुक्त श्री एमबी ओझा से अपेक्षा हैं कि वे इस ओर ध्यान दें और जरूरी इंतजाम कराएँ।
              प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान , जो स्वयं उज्जैन के प्रति विशेष अनुग्रह रखते है, को चाहिए कि वे इस दिशा में विशेषज्ञों की सलाह से शिप्रा नदी के विभिन्न घाटों पर सुरक्षा के तमाम उपाय को सुनिश्चित करने की व्यवस्था करेंगे, ताकि अब और किसी श्रद्धालु की शिप्रा नदी में डूबने से मौत नहीं होने पाए।
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